
September 2025 Mai Kab Hai Masik Shivratri: भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि व्रत किया जाता है। इसे शिव चतुर्दशी व्रत भी कहते हैं। खास बात ये है कि इस व्रत में भी महाशिवरात्रि की तरह महादेव का पूजन रात्रि में करने का महत्व है। इस बार मासिक शिवरात्रि व्रत का संयोग श्राद्ध पक्ष में बन रहा है। जानें कब करें मासिक शिवरात्रि व्रत, पूजा विधि, मंत्र सहित पूरी डिटेल…
ये भी पढ़ें-
Surya Grahan 2025: क्यों होता है सूर्य ग्रहण ? जानें 5 अजीब मान्यताएं
पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 19 सितंबर, शुक्रवार की रात 11 बजकर 37 मिनिट से शुरू होगी, जो 20 सितंबर, शनिवार की रात 12 बजकर17 मिनिट तक रहेगी। चूंकि शिवरात्रि व्रत में रात्रि पूजन का महत्व है, इसलिए ये व्रत 19 सितंबर को ही किया जाएगा।
ये भी पढ़ें-
Surya Grahan 2025: उज्जैन के ज्योतिषाचार्य से जानें सूर्य ग्रहण से जुड़े हर सवाल का जवाब
19 सितंबर, शुक्रवार को व्रती (व्रत करने वाले) दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें यानी सिर्फ फलाहार करें। किसी की बुराई न करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। रात्रि में शिवजी की पूजा करें। पूजा के लिए शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 51 मिनिट से 12 बजकर 38 मिनिट तक रहेगा। ये निशिथ काल का मुहूर्त है जो पूरे 47 मिनिट तक रहेगा।
19 सितंबर, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। रात में शुभ मुहूर्त से पहले पूजा सामग्री एक स्थान पर एकत्रित कर लें। शुभ मुहूर्त शुरू होते ही शिवलिंग पर स्वच्छ जल चढ़ाएं। फिर दीपक जलाएं और फूल, बिल्व पत्र, धतूरा आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाएं। पूजा करते समय ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। भगवान को अपनी इच्छा अनुसार भोग लगाएं। आरती करें और रात भर भजन-कीर्तन करें। अगली सुबह यानी 20 सितंबर, शनिवार को ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा आदि दें। इस तरह पारणा करने के बाद स्वयं भोजन करें।
जय शिव ओंकारा ऊं जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ऊं जय शिव ओंकारा॥
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।