Temple of Fire: इस मुस्लिम देश में है प्राचीन देवी मंदिर, 300 सालों से जल रही अखंड ज्योति

Published : May 16, 2025, 12:19 PM ISTUpdated : May 16, 2025, 05:12 PM IST
azerbaijan devi temple

सार

Boycott Azerbaijan: इन दिनों सोशल मीडिया पर बॉयकॉट अजरबैजान ट्रेंड कर रहा है। वैसे तो अजरबैजान एक मुस्लिम देश है, लेकिन यहां हिंदुओं का एक पवित्र मंदिर है, जिसे टेंपल ऑफ फायर कहा जाता है। पारसी भी इस मंदिर में माथा टेकते हैं। 

Boycott Azerbaijan Trends: भारत द्वारा पिछले दिनों पाकिस्तान पर की गई सैन्य कार्यवाही के बाद अजरबैजान ने पाकिस्तान को सपोर्ट किया था। जिसके चलते इंडियन सोशल मीडिया पर बॉयकॉट अजरबैजान ट्रेंड कर रहा है। भारतीय पर्यटकों ने अजरबैजान की यात्रा रद्द करना शुरू कर दिया। अजरबैजान में 95 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, ये एक इस्लामिक देश है। लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि अजरबैजान में देवी का प्राचीन स्थान है, जहां सैकड़ों सालों से देवी की जोत जल रही है। आगे जानें इस प्राचीन देवी स्थान के बारे में…

अजरबैजान में कहां है टेंपल ऑफ फायर?

अजरबैजान में सूराखानी नाम का एक शहर है। यहीं पर देवी का प्राचीन मंदिर स्थित है क्योंकि यहां अखंड जोत सैकड़ों सालों से चल रही है, इसलिए इसे टेंपल ऑफ फायर कहते हैं। इस मंदिर का इतिहास 300 साल पुराना बताया जाता है। पहले के समय में हिंदू यहां दर्शन और पूजन करने आते थे लेकिन बदलते समय के साथ ये स्थान बदहाल हो गया। सिर्फ हिंदू हीं नहीं पारसी भी यहां पूजा करने आते थे। पारसी इस स्थान को आतेशगाह कहते हैं, जिसका अर्थ है आग का घर।

किसने बनवाया था टेंपल ऑफ फायर?

इतिहासकारों की मानें तो हरियाणा के कुरुक्षेत्र के मादजा गांव में रहने वाले बुद्धदेव नाम के व्यापारी ने देवी का ये मंदिर बनवाया था और अखंड जोत जलाई थी। इससे संबंधित एक शिलालेख भी यहां मिलता है। इस शिलालेख पर उत्तमचंद और शोभराज नाम के व्यापारियों का नाम भी लिखा है। ऐसा कहा जाता है कि सैकड़ों सालों पहले भारतीय व्यापारी इस रास्ते से होकर अन्य देशो में जाते थे। रास्ते से होकर गुजरने वाले व्यापारी यहां मत्था जरूर टेकते थे और मंदिर के पास बने कोठरियों में विश्राम भी करते थे।

किस देवी को समर्पित है टेंपल ऑफ फायर?

हिंदू धर्म में अग्नि को बहुत पवित्र माना गया है, अग्नि से संबंधित एक शक्तिपीठ भी भारत में है, जिसे ज्वालादेवी कहते हैं। टेंपल ऑफ फायर में लगे शिलालेख पर भी ज्वाला माता को स्मरण किया गया है। मंदिर पर एक प्राचीन त्रिशूल भी स्थापित है। शिलालेख पर इसके निर्माण का सन विक्रम संवत 1802 लिखा है जो 1745-46 ईस्वी के बराबर है। 1998 में यूनेस्को ने इसे वर्ल्ड हैरिटेज साइट बनाया। 2007 में इसे राष्ट्रीय हिस्टॉरिकल आर्किटेक्चर रिजर्व एरिया घोषित किया गया।


Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो ज्योतिषियों द्वारा बताई गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

 

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