
आचार्य चाणक्य के अनुसार, पिता के बाद गुरु ही वो व्यक्ति होता है जो हमें काबिल बनता हुआ देखना चाहता है। जहां पिता अपनी संतान का भविष्य संवारने के लिए दिन-रात मेहनत करता है तो वहीं गुरु भी अपने ज्ञान के माध्यम से विद्यार्थियों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए गुरु को भी पिता की तरह सम्मान देने की बात आचार्य चाणक्य ने कही है।
आचार्य चाणक्य के अनुसार, जो पुरोहित यज्ञोपवीत संस्कार करवाता है, वह भी पिता की तरह सम्मान करने योग्य होता है क्योंकि धर्म ग्रंथों में यज्ञोपवीत को व्यक्ति का दूसरा जन्म माना जाता है। इसलिए शास्त्रों में यज्ञोपवीत करवाने वाले पुरोहित को भी पिता की तरह सम्मान देने के लिए कहा गया है।
यदि आप पढ़ाई-लिखाई या किसी दूसरे काम के लिए परदेस में रहते हैं और वहां जो व्यक्ति आपका ध्यान रखता है, उसे भी पिता की तरह सम्मान देने को कहा गया है क्योंकि पिता के अभाव में वही आपका पूरा ध्यान रखता है। किसी अंजान शहर में आपका ध्यान रखने वाला पिता से कम नहीं होता।
अगर आप पर प्राणों का संकट आ पड़े और ऐसे में कोई आपकी रक्षा करे तो उस रक्षा करने वालों को भी पूरी उम्र पिता की तरह सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए, ऐसा आचार्य चाणक्य का कहना है। क्योंकि जिस तरह पिता ने आपको जन्म दिया है उसी तरह रक्षा करने वाले ने भी आपका जीवन बचाया है।
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इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।