इस बार गुरु पूर्णिमा पर्व 3 जुलाई, सोमवार को है। इस दिन सभी लोग अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं। गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। हर साल ये उत्सव आषाढ़ मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है।
उज्जैन. सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, 'गुरू' - भारतीय पौराणिक साहित्य इस शब्द की महिमा से भरी हुई है। जीवन के रहस्यों की गहराई तक पहुंचने की मानवीय जिज्ञासा जितनी पुरानी है, उतना ही प्राचीन है ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले गुरु का महत्व। 'गुरु' का शाब्दिक अर्थ ही है - अंधेरे को मिटाने वाला। पुरातन काल से ही गुरु की कृपा को पाने के कई तरीके प्रचलित रहे हैं। गुरु के रूप में किसी व्यक्ति की भौतिक मौजूदगी ही एक मात्र तरीका नहीं बल्कि गुरु की उपस्थिति इससे कहीं ज्यादा बड़ी है, साथ ही इस मौजूदगी की कृपा को ग्रहण करने के रास्ते भी व्यापक हैं। ऐसा ही एक माध्यम है - 'गुरु पूजा'।
गुरु पूजा एक ऐसा आसान. लेकिन बेहद शक्तिशाली तरीका है जिसकी मदद से गुरु को आमंत्रित करके उनकी उपस्थिति और कृपा को ग्रहण किया जा सकता है। गुरु पूजा को लेकर एक आम धारणा है कि यह गुरु के प्रति धन्यवाद प्रकट करने के लिए किया जाने वाला कर्मकांड है। गुरु पूजा से जुड़े कुछ मंत्रों का शाब्दिक अर्थ भी यह आभास कराता है लेकिन यह प्रक्रिया इससे कहीं ज्यादा सूक्ष्म और गहरी है।
सद्गुरु के अनुसार, बीते हजारों सालों में यह दुनिया कई आत्मज्ञानी महापुरुषों और गुरुओं की साक्षी बनी। अपने समय में उन्होंने खुले हाथों से लोगो को परम अवस्था तक पहुंचने का मार्ग दिखाया। इन गुरुओं के भौतिक शरीर विलीन हो जाने के बाद भी उनके आध्यात्मिक साधकों के जीवन में योगदान की क्षमता आज भी प्रबल है। आत्मज्ञान तक पहुंचने वाले इन योगियों ने ऊर्जा के रूप में अपने ज्ञान को आध्यात्मिक आयाम में निवेश किया है जोकि हमेशा उपलब्ध है।
उदाहरण के लिए, अगर कोई खुद को पर्याप्त ग्रहणशील बना लेता है तो गौतम बुद्ध 3 हजार साल पहले की तरह आज भी उतने ही उपलब्ध हैं। ऐसे ही हजारों आत्मज्ञानी महापुरुष सूक्ष्म ऊर्जा रूप में मौजूद हैं।
गुरु पूजा की प्रक्रिया
गुरु पूजा के सामान्य तौर पर कई तरीके प्रचलित हैं लेकिन इस आयाम को पूरी जीवंतता में महसूस करने की कई प्रक्रियाएं आज भी उपयोग की जाती हैं, जिनमें से एक है षोडशोपचार। षोडशोपचार विधि से पूजा 16 चरण में होती है। इस प्रक्रिया को आप ईशा योग केंद्र सहित तमाम जगहों पर जाकर सीख सकते हैं। इस कर्मकांड में नारियल, फल और फूल जैसी कई तरह की सामग्री को व्यवस्थित ज्यामिती में रखकर मंत्रों का उच्चारण करके अर्पण किया जाता है। यह एक तरह का कर्मकांड है जिसके प्रति पूरी निष्ठा और भागीदारी इसे बेहद शक्तिशाली प्रक्रिया बना सकती है।
आने पर मजबूर हो जाते हैं गुरु
सद्गुरु कहते हैं कि गुरु पूजा करते समय खुद को पूरी तरह से इस तरह विकल्पहीन बना लेना चाहिए मानो इसके अलावा आपके पास कुछ और रास्ता नहीं है। भागीदारी की ऐसी अवस्था होने पर गुरु के पास भी कोई और रास्ता नहीं बचता और उन्हें आना ही पड़ता है। अगर दीक्षा के बाद कर्मकांड की सही प्रक्रिया के साथ इन देवीय शक्तियों का आह्वान किया जाए तो यह आमंत्रण कृपा की बेहद ऊर्जावान संभावना को जन्म दे सकता है।