
Premanand Govind Sharan Pravachan: भगवान से जुड़ने के लिए सबसे पहले हमें उनके ध्यान और जाप में मग्न होना पड़ता है। कई माता-पिता ऐसे होते हैं जोकि अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की शुरू से कोशिश करते हैं। इसी संदर्भ में स्वामी प्रेमानंद महाराज से जब ये सवाल पूछा गया कि बच्चों में जाप की आदत कैसे डाले? तो इसका बेहद ही सरल तरीके से जवाब उन्होंने लोगों को दिया।
स्वामी प्रेमानंद महाराज ने अपनी बात में कहा
एक माला ही बैठकर जप काउंटर (एक मशीन है) से करवाएं । उनसे कहो कि तुम 108 बार राधा-राधा बोलो तुमको अभी हलवा बनाकर खिलाएंगे। तुमको ये देंगे। बच्चों को प्रलोभन देने का काम करो। एक माला करो राधा-राधा। हमें दिखाओ कि 108 बार किया की नहीं। ऐसे धीरे-धीरे करके उनको आगे बढ़ाओं कि अब 200 बार करो। ऐसे धीरे-धीरे करके लगाओगे तो बचपन से संस्कार बन गए ना नाम जप के तो अच्छे सदगृहस्थ बन जाएंगे। उनको शिक्षा दें कि गलत आचरण ना करें।
स्वामी प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा
,' आजकल बच्चों का माहौल भी बहुत गंदा हो रहा है। ऐसे में अपने बच्चों को बचाएं। उनसे प्यार से पूछे कि कोई ऐसी गंदी बात, कोई ऐसी गंदी हरकत, कोई ऐसा गंदा संग, कोई ऐसी गंदी क्रिया की है? उनको प्यार से दुलार से समझाओं कि अगर गलत किया तो उनके मन में भय भी होना चाहिए। प्यार और भय के साथ हम अपने बच्चों की जिंदगी बचाएं। नहीं तो आज का वातावरण मोबाइल और कुसंग का है वो सीधे नष्ट करने वाला है।
इससे पहले प्रेमानंद महाराज ने इस सवाल का जवाब दिया था कि हर पाप को भगवान माफ करता है या फिर नहीं? उन्होंने कहा
हाँ, अब यह बात समझनी पड़ेगी कि जैसे पूर्व जन्म में पाप किए गए और उन पापों के परिणामस्वरूप यह शरीर बना, तो अब हम चाहे जितना भी भजन करें — जो कुछ इस शरीर को भोगना लिखा है, वह तो भोगना ही पड़ेगा। पूर्व के पाप नष्ट हो जाएंगे। लेकिन जिन कर्मों से शरीर की रचना हुई है, जिस समय यह शरीर बना था, उस समय तो हम भजन नहीं कर रहे थे। शरीर बनाने के समय पाप और पुण्य दोनों कर्मों का संयोग होता है। आज हम भजन कर रहे हैं, तो उसका फल हमें आगे मिलेगा, लेकिन पिछले कर्मों से जो शरीर बना है, उसका भोग तो करना ही पड़ेगा। बाकी जो संचित (जमा हुए) कर्म हैं, वे सब भस्म हो जाएंगे।"