Buddha Purnima 2024: किन 3 लोगों को देख मन में जागा वैराग्य और राजकुमार सिद्धार्थ बन गए ‘महात्मा बुद्ध’?

Published : May 20, 2024, 09:27 AM IST
buddha purnima 2024

सार

Buddha Purnima 2024: इस बार बुद्ध पूर्णिमा का पर्व 23 मई, गुरुवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी तिथि पर राजकुमार सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी और वे महात्मा बुद्ध कहलाए। 

हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि पर बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 23 मई, गुरुवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी तिथि पर महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ और इसी तिथि पर ज्ञान की प्राप्ति भी हुई। इतिहासकारों के अनुसार महात्मा बुद्ध एक राजकुमार थे। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। जब ये छोटे थे तो राजज्योतिषी ने इनकी कुंडली देखने के बाद ये भविष्यवाणी की कि ये बालक बड़ा होकर महान संन्यासी बनेगा। कहते हैं कि एक बार कुछ लोगों को देखकर सिद्धार्थ के मन में वैराग्य जाग गया और वे ज्ञान पाने के लिए महल को छोड़कर इधर-उधर भटकने लगे। आगे जानिए सिद्धार्थ गौतम ने ऐसा क्या देखा, जिसके बाद उनके मन में वैराग्य जाग गया…

कैसे राजकुमार सिद्धार्थ के मन में जागा वैराग्य?
एक दिन राजकुमार सिद्धार्थ बिना किसी को बताए अपने रथ पर महल से बाहर घूमने निकले। तभी उन्हें सामने एक रोगी व्यक्ति दिखाई दिया। इसके पहले उन्होंने किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देखा था। जब उन्होंने इसके बारे में अपने सारथी से पूछा तो उसने कहा कि ‘ये शरीर को नाशवान है। समय-समय पर इसमें रोग होते हैं, इनमें से कुछ असाध्य भी होते हैं। जिनके कारण भयानक कष्ट सहने पड़ते हैं। ये सुनकर सिद्धार्थ का मन विचलित हो गया।

फिर दिखाई दिया एक वृद्ध
राजकुमार सिद्धार्थ जब थोड़ा आगे बढ़े तो उन्हें एक वृद्ध व्यक्ति दिखाई दिया, जो मरणासन्न स्थिति में था। जब सिद्धार्थ ने उसके बारे में अपने सारथी से पूछा तो उसने कहा कि ‘संसार में सभी को एक न एक दिन बूढ़ा होना ही पड़ता है। ये प्रकृति का नियम है। वृद्धावस्था में अनेक प्रकार के कष्ट भी होते हैं। ये देखकर सिद्धार्थ और भी विचलित हो गए।

मृत व्यक्ति को देखकर जागा वैराग्य
रोगी और वृद्ध को देखने के बाद राजकुमार सिद्धार्थ को एक मृत व्यक्ति दिखाई दिया। सिद्धार्थ ने इसके पहले ऐसा कुछ नहीं देखा था। उन्होंने अपने सारथी से जब इसके बारे में पूछा तो उसने कहा कि ‘मृत्यु ही यही अंतिम है, जिसका जन्म हुआ है, उसे एक दिन मरना ही पड़ता है।’ सारथी की बात सुनकर सिद्धार्थ के मन में वैराग्य की भावना जाग गई और उन्होंने संन्यासी मार्ग अपनाने का मन बना लिया।


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