Laddu Holi 2023: बरसाना में कहां खेली जाती है लड्डू होली, क्या है ये परंपरा-कैसे शुरू हुई? जानें इससे जुड़ी खास बातें

Laddu Holi 2023: इस बार होली (धुरेड़ी) 8 मार्च को खेली जाएगी। श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा, वृंदावन आदि में होली का खुमार 8 दिन पहले से ही शुरू हो जाएगा। 27 फरवरी को बरसाना के लाडलीजी के मंदिर में विश्व प्रसिद्ध लड्डू होली खेली जाएगी।

 

Manish Meharele | Published : Feb 26, 2023 9:10 AM IST / Updated: Feb 26 2023, 03:45 PM IST

उज्जैन. चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि पर होली (धुरेड़ी) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 8 मार्च, बुधवार को है। वैसे तो ये पर्व पूरे देश में बड़ी हो धूम-धाम से मनाया जाता है लेकिन गोकुल, मथुरा, वृंदावन आदि क्षेत्रों में होली की रौनक देखते ही बनती है। यहां फाग उत्सव की परंपरा भी है यानी होली से पहले ही प्रमुख मंदिरों में फागुन के गीत गाए जाते हैं। इस मौके पर बरसाना के लाड़लीजी के मंदिर में विश्व प्रसिद्ध लड्डू होली (Laddu Holi 2023) खेली जाती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूरे से लोग यहां आते हैं। आगे जानिए इस बार कब खेली जाएगी लड्डू होली और क्या है इससे जुड़ी परंपराएं…


इस दिन खेली जाएगी लड्डू होली (Laddu Holi 2023 Date)
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बरसाना के लाडलीजी मंदिर में लड्डू होली खेलने की परंपरा है। इस बार ये तिथि 27 फरवरी, सोमवार को है। इस दिन राधारानी का मंदिर भक्तों से भरा होता है। दूर-दूर से भक्त यहां इस होली को देखने के लिए आते हैं। राधा रानी से भक्तों को साल भर इस दिन का इंतजार रहता है। इस मौके पर हर भक्त को प्रसाद के रूप में लड्डू दिए जाते हैं।


क्या है लड्डू होली की परंपरा? (What is the tradition of Laddu Holi?)
परंपरा के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को बरसाना गांव से फाग खेलने का आमंत्रण नंदगांव तक पहुंचाया जाता है। उसी दिन नंदगांव से एक पुरोहित फाग आमंत्रण को स्वीकार करने का संदेशा लेकर बरसाना आता है। इस मौके पर लाडली जी के मंदिर में खुशियां मनाई जाती हैं और लड्डू खिलाकर पुरोहित का मुंह मीठा कराया जाता है। इसके बाद रंग-गुलाल उड़ाकर फाग उत्सव की शुरूआत होती है। देखते ही देखते लोग एक-दूसरे पर लड्डू फेंकने लगते हैं और इस तरह लड्डू होली खेली जाती है।


कैसे शुरू हुई लड्डू होली की परंपरा? (How did the tradition of Laddu Holi start?)
लड्डू होली से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। इनमें से एक परंपरा ये भी है कि जिस समय श्रीकृष्ण नंदगांव में रहते थे, उस समय बरसाना से एक गोपी फाग खेलने का निमंत्रण लेकर नंदगांव आई, इस निमंत्रण को नंद बाबा ने स्वीकार कर लिया। ये संदेश लेकर उन्होंने अपने पुरोहित को वरसाना भेजा, वहां राधाजी के पिता वृषभानु ने पुरोहित को लड्डू खिलाए। जब पुरोहित को गोपियां रंग डालने लगी तो उन्होंने उन पर लड्डू फेंकने शुरू कर दिए। तभी से ये परंपरा बन गई जो आज भी निभाई जा रही है।



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