Mahashivratri 2023: छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में स्थापित है त्रेतायुग का है ये शिवलिंग, स्वयं देवी सीता ने की थी इसकी स्थापना

Mahashivratri 2023: हमारे देश में भगवान शिव के अनेक प्राचीन मंदिर हैं, इन्हीं में से एक है कुलेश्वर महादेव। ये मंदिर छत्तीसगढ़ के राजिम नामक स्थान पर तीन नदियों के संगम स्थल पर है। हर साल यहां महाशिवरात्रि से पहले विशाल मेले का आयोजन किया जाता है।

 

Manish Meharele | Published : Feb 10, 2023 4:21 AM IST

उज्जैन. इन दिनों छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के राजिम तीर्थ में पुन्नी मेले का आयोजन हो रहा है। ये मेला महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2023) तक रहेगा। राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयास भी कहा जाता है। इसका कारण है कि यहां तीन नदी महानदी, सोंढूर और पैरी का संगम होता है। इस स्थान का संबंध रामायण काल से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम कुछ समय यहां भी रूके थे। यहां एक प्राचीन शिव मंदिर भी है, जिसे कुलेश्वर महादेव (Kuleshwar Mahadev Temple) के नाम से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में जो शिवलिंग है, उसका स्थापना स्वयं देवी सीता ने की थी। आगे जानिए इस मंदिर से जुड़ी खास बातें…


देवी सीता ने बनाया है ये शिवलिंग (Kuleshwar Mahadev Temple)
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में छत्तीसगढ़ को दण्डकारण्य के नाम से जाना जाता था। इस स्थान पर कई विशाल राक्षस रहते थे। श्रीराम जब यहां आए तो उन्होंने राक्षसों का वध किया और ऋषि-मुनियों को उनके आतंक से मुक्ति दिलाई। देवी सीता ने यहां पूजा के लिए रेत से एक शिवलिंग बनाया, वहीं आज कुलेश्वर महादेव के नाम से जाना पूजा जाता है।


आठवीं सदी का है ये मंदिर
वर्तमान में जो मंदिर यहां दिखाई देता है, वह आठवीं सदी में बनवाया गया है। इस मंदिर का मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 3 नदियों के तट पर होने के कारण यहां बारिश के दिनों में कई बार बाढ़ आती है, जिसमें ये मंदिर कई दिनों तक डूबा रहता है, लेकिन इसके बाद भी मजबूत नींव के साथ ये मंदिर सदियों से टिका हुआ है। लोग बताते हैं कि बाढ़ के कारण राजिम नदी पर बना पुल 40 साल भी नहीं टिका और आठवीं सदी का कुलेश्वर महादेव मंदिर आज भी जस का तक खड़ा है।


ऐसा ही मंदिर का परिसर
कुलेश्वर मंदिर का परिसर काफी बड़ा और मजबूत है। मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊंचाई 4.8 मीटर है। मंदिर का मूल भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है, जिस पर रेत एवं चूने के गारे से चिनाई की गई है। मंदिर में तीनों ओर से सीढ़ियां बनाई गई हैं। मंदिर के चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है। मंदिर प्राचीन समय की स्थापत्य और वास्तु कला का अनुपम उदाहरण हैं।


कैसे पहुंचें?
- मंदिर से निकटतम हवाई अड्डा रायपुर में है, जो यहां से 45 किमी दूर है। ये हवाई अड्डा दिल्ली, विशाखापट्टनम एवं चेन्नई से जुड़ा है।
- यहां से निकटतम रेलवे स्टेशन भी रायपुर ही है। ये स्टेशन हावड़ा मुंबई रेलमार्ग पर स्थित है।
- राजिम नियमित बस और टैक्सी सेवा से रायपुर तथा महासमुंद से जुड़ा हुआ है।


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