Mohini Ekadashi 2023 Date: हिंदू धर्म में कुछ तिथियां बहुत ही पवित्र मानी गई हैं, एकादशी तिथि भी इनमें से एक है। हर महीने के दोनों पक्षों की एकादशी तिथि को व्रत-पूजा विशेष रूप से की जाती है। साल में कुल 24 एकादशियां होती हैं।
उज्जैन. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, तिथियों की संख्या कुल 16 है। इनमें से एकादशी तिथि का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। ये तिथि महीने के दोनों पक्षों (शुक्ल व कृष्ण) में आती है। इस तरह एक साल में कुल 24 एकादशी तिथि होती ह। इनके नाम, महत्व और कथा भी अलग-अलग है। इसी क्रम में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु ने इसी दिन मोहिनी रूप में अवतार लिया था। इसलिए इसे मोहिनी एकादशी कहते हैं। आगे जानिए इस बार कब है मोहिनी एकादशी व इससे जुड़ी खास बातें…
कब है मोहिनी एकादशी? (Kab Hai Mohini Ekadashi)
पंचांग के अनुसार, इस बार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 30 अप्रैल, रविवार की रात 08:29 से शुरू होकर 01 मई, सोमवार की रात 10:10 तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 1 मई को होगा और पूरे दिन भी यही तिथि रहेगी, इसलिए इसी दिन मोहिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा।
मोहिनी एकादशी के शुभ योग और मुहूर्त (Mohini Ekadashi 2023 Shubh Muhurat)
1 मई, सोमवार को पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र शाम 05:51 तक रहेगा। इसके बाद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र रात अंत तक रहेगा। सोमवार को पहले पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र होने से ध्वजा और इसके बाद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र होने से श्रीवत्स नाम के 2 शुभ योग इस दिन रहेंगे। इसके अलावा ध्रुव नाम का शुभ योग इस दिन सुबह 11:44 तक रहेगा।
भगवान विष्णु ने क्यों लिया मोहिनी अवतार? (Mohini Avtar Ki Katha)
- पुराणों के अनुसार, एक बार समुद्र में छिपे रत्नों को पाने के लिए देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। समुद्र को मथने से कई तरह के रत्न निकले, जिनमें से ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, देवी लक्ष्मी, उच्चश्रवा घोड़ा आदि प्रमुख थे।
- समुद्र मंथन में से अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। अमृत पीने के लिए देवता और दैत्यों में युद्ध होने लगा। तब देवताओं की सहायता के लिए भगवान विष्णु मोहिनी अवतार में उनके पास पहुंचे।
- मोहिनी रूपी भगवान विष्णु ने सभी को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वे स्वयं दोनों पक्षों को बारी-बारी से अमृत पिलाएंगे। लेकिन वास्तव में मोहिनी सिर्फ देवताओं को ही अमृत पिला रही थी और दैत्यों के साथ छल कर रही थी।
- ये बात एक दैत्य स्वरभानु ने जान ली और वह देवताओं का रूप लेकर सूर्य और चंद्रमा के बीच में जाकर बैठ गया। जब मोहिनी उसे अमृत पिला रही थी, उसी समय सूर्य-चंद्र ने उसे पहचान लिया।
- भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का गला काट दिया, लेकिन अमृत पी लेने की वजह से उसकी मृत्यु नही हुई, लेकिन उसका शरीर दो हिस्सों में बंट गया। यही दो हिस्से राहु और केतु कहलाए। राहु-केतु आज भी ग्रहों के रूप में पूजे जाते हैं।