Muharram 2023: क्या हैं ‘मर्सिया’ गीत, ये मुहर्रम पर क्यों गाए जाते हैं? जानें और भी खास बातें

Muharram 2023: इस बार 29 जुलाई, शनिवार को मुहर्रम का जुलूस निकाला जाएगा, जिसे यौम-ए-अशूरा भी कहा जाता है। जुलूस के दौरान मुस्लिम धर्म के लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद कर गम मनाते हैं और एक खास तरह का शोक गीत गाते हैं जिसे मर्सिया कहा जाता है।

 

Manish Meharele | Published : Jul 28, 2023 5:38 AM IST

उज्जैन. मुस्लिम धर्म में मुहर्रम (Muharram 2023) का महीना बहुत खास माना गया है। इसे खुदा की इबादत का और गम का महीना भी कहते हैं। इस महीने की 10वीं तारीख को इमाम हुसैन की याद में ताजिए निकाले जाते हैं। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को ही इमाम हुसैन (imam hussain) नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलते हुए शहीद हुए थे। इसलिए हर साल उनकी शहादत को याद किया जाता है। मुहर्रम के जुलूस के दौरान महिलाएं महिलाएं और पुरुष एक खास तरह का गीत गाते हैं जिसे मर्सिया कहा जाता है। ये एक शोक गीत है, जो मातम के मौके पर ही गाया जाता है। आगे जानिए क्या है मर्सिया का अर्थ और इससे जुड़ी खास बातें…

क्या है 'मर्सिया' गीत? (What Is Marsiya)
मर्सिया शब्द न तो हिंदी का है न ही उर्दू का। ये एक अरबी शब्द है जो ‘रसा’ से बना है। रसा का शाब्दिक अर्थ है रुलाना। इसी आधार पर मर्सिया का अर्थ है किसी मरने वाले पर अफसोस करना। जब कोई अपना व्यक्ति मर जाता है तो उसकी याद में मर्सिया गीता गाया जाता है। चूंकि इमाम हुसैन ने इस्लाम की राह पर चलते हुए शहादत दी थी, इसलिए मुहर्रम के मौके पर ये शोक गीत खास तौर पर गाया जाता है।

मुहर्रम के मौके पर इसलिए गाते हैं मर्सिया
मुहर्रम के मौके पर मर्सिया गीत जरूर गाया जाता है, इसके बिना मुहर्रम अधूरा लगता है। इस मौके पर गाए जाने वाले मर्सिया गीत में इमाम हुसैन की मौत का बहुत विस्तार से वर्णन किया जाता है। जिसे सुनकर लोग गमगीन हो जाते हैं और आंखों में अपने आप ही आंसू आ जाते हैं। इस गीत में इतना दर्द होता है कि काले बुर्के पहने खड़ीं महिलाएं छाती पीट-पीटकर रोने लगती और पुरुष ख़ुद को पीट-पीटकर लहुलुहान हो जाते हैं।

किसके मर्सिया गीत सबसे मशहूर? (Top Marsiya Author)
वैसे तो कई शायरों ने मर्सिया गीत लिखे हैं, लेकिन इन सभी में मीर अनीस (मीर बाबर अली अनीस) और मिर्जा दबीर (मिर्जा सलामत अली दबीर) का नाम सबसे पहले लिया जाता है। ये दोनों ही शायर लखनऊ (Lucknow) के थे। इनके लिखे गए मर्सिये गीत भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, बंग्लादेश आदि देशों में भी गाए जाते हैं।


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