सार
Muharram 2023: इस्लाम के इतिहास में जब भी इमाम हुसैन का नाम आता है तो कर्बला की लड़ाई को जरूर याद किया जाता है। हर साल मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन की शहादत को याद कर जुलूस निकाला जाता है और शोक मनाया जाता है।
उज्जैन. इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है मुहर्रम (Muharram 2023)। इस महीने के पहले 10 दिनों तक मुस्लिमों द्वारा इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। इमाम हुसैन कर्बला के मैदान में हुई लड़ाई के दौरान शहीद हो गए थे। आज भी हर साल मुस्लिम समाज के लोग इमाम हुसैन की शहादत को यादकर मातम मनाते हैं और मुहर्रम महीने की दसवी तारीख को जुलूस निकालते हैं, जिसे यौम ए अशूरा (Youm e Ashura 2023) कहा जाता है। इस बार मुहर्रम का जुलूस 29 जुलाई, शनिवार को निकाला जाएगा।
कौन थे इमाम हुसैन? (Who was Imam Hussain?)
इमाम हुसैन (Hazrat Imam Hussain) इस्लाम के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे। वे नेकी और ईमानदारी के रास्ते पर चलते हुए इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10वीं तारीख को कर्बला के मैदान में शहीद हो गए थे। आज भी कर्बला मुस्लिम समाज के लोगों के पवित्र स्थान हैं।
कब हुई थी कर्बला का लड़ाई? (When did the battle of Karbala take place?)
इस्मालिक कैलेंडर के अनुसार, 61 हिजरी में मुहर्रम महीने की 2 तारीख को इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ कूफा शहर जा रहे थे, तभी रास्ते में तानाशाह राजा यजीद की फौज ने उन्हें घेर लिया। वो जगह कर्बला थी। इमाम हुसैन ने वहीं रहने का फैसला लिया। मुहर्रम महीने के पहले 10 दिनों में हजरत इमाम हुसैन पर तानाशाह यजीद ने खूब जुल्म किए।
कौन था कर्बला का पहला शहीद? (Who was the first martyr of Karbala?)
इमाम हुसैन को यजीद की सेना ने कर्बला में घेर लिया और पास में बहने वाली फुरात नदी पर पहरा लगा दिया। इमाम हुसैन का 6 माह का बेटा अली असग़र भी उनके साथ था। इमाम हुसैन अली असगर को लेकर खेमें से बाहर निकले और यजीद की फौज से बच्चे के लिए पानी देने को कहा। जवाब में सैनिक ने ऐसा तीर चलाया कि वो हज़रत अली असग़र के हलक को चीरता हुआ इमाम हुसैन के बाज़ू में जा लगा। बच्चे ने बाप के हाथ पर तड़प कर अपनी जान दे दी। इमाम हुसैन के काफिले का यह सबसे नन्हा व पहला शहीद था।
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