
Kyo Nikalte Hai Tajiye: अंग्रेजी कैलेंडर की तरह इस्मालिक कैलेंडर भी 12 महीने का होता है। इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम मुहर्रम है। इस महीने के शुरूआती 10 दिन इस्लाम में बहुत ही खास माने गए हैं। मुहर्रम की दसवीं तारीख को मुस्लिम समाज के लोग हजरत इमाम हुसैन की याद मे मातम मनाते हैं और जुलूस निकालकर कर्बला की शहादत को याद करते हैं। इसे यौम-ए-आशूरा कहते हैं। इमाम हुसैन हजरत पैगंबर के नवासे थे। जानें क्यों खास है मुहर्रम और कब है यौम-ए-आशूरा…
इस्लाम के अनुसार, करीब 1400 साल पहले हजरत इमाम हुसैन को बादशाह यजीद ने कर्बला के मैदान में कैद कर लिया था। मुहर्रम के शुरूआती 9 दिनों तक इमाम हुसैन अपने परिवार और साथियों के साथ खुदा की इबादत करते रहे। दसवें दिन यजीद की सेना में इमाम हुसैन को अपने परिवार और साथियों सहित कत्ल कर दिया। उनकी इस शहादत को आज भी मुस्लिम समाज के लोग भूले नहीं है। इमाम हुसैन की याद में ही मुस्लिम समाज के लोग हर साल मुहर्रम के शुरूआती 10 दिनों में मातम मनाते हैं।
मुहर्रम के दसवें दिन को यौम-ए-आशूरा कहते हैं। इस दिन मुस्लिम समाजजन जुलूस निकालते हैं जिसे ताजिया कहा जाता है। जुलूस के दौरान महिलाएं छाती पीट कर हुसैन की शहादत को याद करती हैं वहीं युवक खुद को चोट पहुंचाते हैं और इमाम हुसैन के दर्द को महसूस करते हैं। इस मौके पर गम की गीत जिसे मर्सिया कहा जाता है वो भी गाया जाता है।
इस बार मुहर्रम का पाक महीना 27 जून 2025 से शुरू हो चुका है, जिसकी दसवीं तारीख 6 जुलाई, रविवार को है। इसलिए 6 जुलाई को ही यौम-ए-अशूरा है और ताजिए का जुलूस भी इसी दिन निकाला जाएगा। आशूरा शब्द, अरबी भाषा के अश्र से लिया गया है, जिसका अर्थ है दस। यौम ए आशूरा का मतलब है दसवां दिन। मुस्लिम समाज के लिए ये दिन बहुत ही खास होता है। इस दिन मुस्लिम समाजजन रोजा भी रखते हैं।