
महिलाओं को सजने-संवरने का बहुत शौक होता है। छोटे से छोटे मौके पर भी महिलाएं सजना-संवरना नहीं भूलती या यूं कहें कि श्रृंगार करना महिलाओं के जीवन का एक खास हिस्सा है तो गलत नहीं होगा। धर्म ग्रंथों में कुछ ऐसे मौकों और स्थानों के बारे में भी बताया गया है, जब महिलाओं को श्रृंगार करने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा करना ठीक नहीं माना जाता। आगे जानिए कब और किस परिस्थिति में महिलाओं को श्रृंगार करने से बचना चाहिए…
ऐसा कहा जाता है कि जब पति घर से कहीं दूर हो यानी किसी काम से दूसरे शहर में गया हो तो उस समय पत्नी को ज्यादा श्रृंगार नहीं करना चाहिए, सिर्फ इतना ही सजना चाहिए जितना उचित हो। ऐसे समय में आवश्यकता से अधिक सजना-संवरना ठीक नहीं माना जाता।
जब परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो उस समय भी महिलाओं को अधिक श्रृंगार नहीं करना चाहिए। ऐसा करना समाज में उनकी छवि को खराब कर सकता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ऐसा करना ठीक नहीं माना जाता। इस बात का विशेष ध्यान स्त्रियों को रखना चाहिए।
विद्वानों का मत है कि ऋतुकाल यानी पीरियड्स के दौरान भी महिलाओं को श्रृंगार करने से बचना चाहिए। सिर्फ इतना ही नहीं इन दिनों में महिलाओं को पति के सामने भी नहीं जाना चाहिए। ऋतुकाल समाप्त होने के बाद महिलाएं श्रृंगार करके पति के सामने जा सकती हैं।
अगर स्त्रियां अपने पति के साथ या अन्य किसी के साथ किसी के घर शोक संवेदना व्यक्त करने जा रही हों तो उस दौरान उन्हें आवश्यकता से अधिक श्रृंगार करने से बचना चाहिए। ऐसे मौकों पर ज्यादा साज-श्रृंगार करना मर्यादा के अनुकूल नहीं होता।
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