
Kaise Shuru Hui Shraddha Ki Parmpra: इस बार पितृ पक्ष 7 से 21 सितंबर तक मनाया जाएगा। मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान तर्पण-पिंडदान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। श्राद्ध की परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है लेकिन इसकी शुरूआत किसने की और किसने सबसे पहले अपने पितरों का श्राद्ध किया? इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। महाभारत में इससे से संबंधित कथा मिलती है जो इस प्रकार है…
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महाभारत के अनुसार, सबसे पहले श्राद्ध करने का उपदेश महर्षि निमि को महातपस्वी अत्रि मुनि ने दिया था। अत्रि मुनि के कहने पर ही महर्षि निमि ने सबसे पहले श्राद्ध किया। उन्हें देखकर अन्य ऋषि-मुनि भी अपने पितरों का श्राद्ध करने लगे।
धीरे-धीरे श्राद्ध करने की परंपरा चारों वर्णों में फैल गई। सभी अपने-अपने पितरों को श्राद्ध में अन्न-पानी देने लगे। लगातार श्राद्ध का भोजन करते रहने से पितर पूर्ण रूप से तृप्त हो गए, लेकिन इससे उन्हें अजीर्ण रोग हो गया, जिससे उन्हें कष्ट होने लगा।
तब पितृ देवता ब्रह्माजी के पास गए और बोले ‘श्राद्ध का अन्न खाते-खाते हमें अजीर्ण रोग हो गया है, हमरा कष्ट दूर कीजिए।’
पितरों की बात सुन ब्रह्माजी बोले ‘मेरे निकट ये अग्निदेव बैठे हैं, ये ही आपकी समस्या का समाधान करेंगे।’
अग्निदेव बोले ‘पितरों, अब से श्राद्ध में हम लोग साथ ही भोजन किया करेंगे। मेरे साथ रहने से आप लोगों का अजीर्ण रोग दूर हो जाएगा।’ अग्निदेव की बात सुनकर पितर प्रसन्न हुए।
यही कारण है जब भी हम पितरों के लिए भोजन बनाते हैं तो उसका कुछ भाग अग्नि में डालते हैं। पहले अग्निदेव उस भोजन को ग्रहण करते हैं बाद में पितृ। ऐसा करने से अग्निदेव और पितृ दोनों का आशीर्वाद हमें प्राप्त होता है।
ब्रह्मपुराण में लिखा है कि ‘श्राद्धं न कुरुते मोहात् तस्य रक्तं पिबन्ति ते।’
अर्थ- जो व्यक्ति अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करता, उसे अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं? मृत प्राणी यानी पितृ श्राद्ध न करने वाले सगे संबंधियों का ही रक्त चूसने लगते हैं। इसलिए सभी के लिए अपने पितरों का श्राद्ध करना जरूरी माना गया है।
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।