Pitru Paksha: पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण के दौरान पितरों के देवता अर्यमा का नाम लिया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, अर्यमा पितृलोक के स्वामी और न्यायाधीश हैं। उनकी प्रसन्नता के बिना पितृगण संतुष्ट नहीं माने जाते।
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय बहुत पवित्र माना जाता है। यह 16 दिनों का काल होता है जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि इस दौरान पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पितरों के देवता कौन हैं? आइए जानते हैं।
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पितरों के देवता अर्यमा
शास्त्रों के अनुसार, अर्यमा पितरों के देवता हैं। उनके नाम के बिना तर्पण अधूरा माना जाता है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि अर्यमा ऋषि कश्यप और देवमाता अदिति के पुत्र हैं। इन्हें आदित्य देवताओं में से एक और इंद्र का भाई भी माना जाता है। अर्यमा को पितृलोक में न्यायाधीश और राजा का पद प्राप्त है।
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अर्यमा का निवास स्थान
अर्यमा को 'अर्यमन' भी कहा जाता है। इनका निवास उत्तरा फागुनी नक्षत्र में है। आकाशगंगा को इनके मार्ग का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि अर्यमा चंद्रमंडल में स्थित पितृलोक में सभी पितरों के स्वामी हैं। वे प्रत्येक कुल और परिवार के पितरों को पहचानते हैं और उनकी तृप्ति का ध्यान रखते हैं।
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श्राद्ध में अर्यमा का महत्व
पितृ पक्ष के दौरान, जल और तर्पण करते समय अर्यमा का नाम लिया जाता है। यज्ञ में मित्र (सूर्य) और वरुण (जल) देवता के साथ, वे भी तर्पण स्वीकार करते हैं, जबकि श्राद्ध में स्वधा तर्पण भी स्वीकार किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अर्यमा के प्रसन्न होने पर ही पितर तृप्त होते हैं।
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पुत्र ही नहीं, पुत्रियां भी कर सकती हैं तर्पण
एक आम भ्रांति है कि केवल पुत्र ही पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं। शास्त्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि पुत्रियां और पौत्र भी तर्पण कर सकते हैं। चाहे पूर्वज किसी भी रूप में हों, वे अपने वंशजों द्वारा किया गया तर्पण स्वीकार करते हैं। श्राद्ध से उन्हें मुक्ति और संतुष्टि मिलती है, तथा परिवार पर उनका आशीर्वाद बरसता है।