Mahakal Shahi Sawari: शाही ठाठ-बाठ से निकली महाकाल की राजसी सवारी, हेलिकॉप्टर से हुई फूलों की बारिश

Published : Aug 18, 2025, 03:37 PM ISTUpdated : Aug 19, 2025, 08:21 AM IST
mahakal shahi sawari live today

सार

Mahakal Shahi Sawari: उज्जैन में भगवान महाकाल की शाही सवारी आज 18 अगस्त, सोमवार को निकाली गई। इस दौरान हेलिकॉप्टर से फूलों की बारिश भी की गई। सवारी में लाखों भक्तों ने बाबा महाकाल के दर्शन किए। 

Ujjain Mahakal Shahi Sawari Live: उज्जैन में भगवान महाकाल की सवारी निकालने की परंपरा काफी पुरानी है। परंपरा के अनुसार सावन के प्रत्येक सोमवार को और इसके बाद भाद्रपद मास के पहले 2 सोमवार को महाकाल की सवारी निकाली जाती है। 18 अगस्त को भाद्रपद मास का दूसरे सोमवार पर बाबा महाकाल की अंतिम सवारी निकाली गई। इसे शाही और राजसी सवारी भी कहते हैं।  सवारी में प्रदेश के मुखिया मोहन यादव भी शामिल हुए और झांझ-मंजीरे बजाते हुए भतों के साथ भजन भी गाए। बाबा महाकाल की सवारी को और भी भव्य बनाने के लिए हेलिकॉप्टर से फूलों की बारिश की गई।

6 रुपों में दिए महाकाल ने दर्शन

शाही सवारी में भगवान महाकाल 6 अलग-अलग रूपों में अपने भक्तों को दर्शन दे रहे थे। इन रूपों को मुखारविंद कहा जाता है। चांदी की पालकी में श्री चंद्रमौलेश्वर, हाथी पर श्री मनमहेश, गरुड़ रथ पर श्री शिवतांडव, नंदी रथ पर श्री उमा-महेश, डोल रथ पर होल्कर स्टेट का मुखारविंद और रथ पर सप्तधान मुखारविंद विराजमान था। 

70 भजन मंडलियों ने दी प्रस्तुति 

शाही सवारी का स्वरूप बहुत ही वैभव पूर्ण दिखाई दे रहा था। इसमें 70 भजन मंडलियां नाचते-गाते और अपनी प्रस्तुतियां देती हुई चल रही थीं। सबसे आगे पुलिस बैंड मधुर धुन बजाता हुआ चल रहा था। सात किलोमीटर लंबे मार्ग में जगह-जगह भक्तों ने अपने राजा का स्वागत किया। 10 ड्रोन से भी रजत पालकी पर पुष्पवर्षा की गई। 

पुलिस बल ने दिया गार्ड ऑफ ऑनर

पालकी के मंदिर परिसर से बाहर निकलने से पहले शासकीय अधिकारी व जनप्रतिनिधि बाबा महाकाल की पूजा की। इसके बाद जब शाम को 4 बजे पालकी बाहर निकली तो मुख्य द्वार पर सशस्त्र पुलिस बल द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। यहां से पालकी विभिन्न मार्गों से होते हुए रामघाट पहुंची। यहां दत्त अखाड़ा के साधु-संतों द्वारा एक बार पुन: बाबा महाकाल की पूजा की गई। यहां से निकल सवारी विभिन्न मार्गों से होते हुए रात को करीब 10 बजे पुन: मंदिर परिसर में प्रवेश कर गई।

अंतिम सवारी को क्यों कहते हैं शाही सवारी?

भाद्रपद मास के दूसरे सोमवार को निकलने वाली सवारी अंतिम होती है। इस सवारी का स्वरूप बहुत ही शानदार होता है। अन्य सवारियों में जहां 10 से 15 भजन मंडलियां होती हैं वहीं अंतिम सवारी में इनकी संख्या 70 के लगभग हो जाती है। इस सवारी का मार्ग भी ज्यादा बड़ा होता है। उज्जैन ही नहीं बल्कि अन्य शहरों से भी लोक कलाकार इसमें प्रस्तुति देने आते हैं। इसलिए इस सवारी को शाही और राजसी सवारी कहते हैं।

 

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