इस सोमवार इन तरीकों से करें पूजा, मिलेगा जलझूलनी एकादशी का लाभ

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी व डोल ग्यारस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 6, 2019 11:21 AM IST / Updated: Sep 06 2019, 05:01 PM IST

उज्जैन. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी व डोल ग्यारस भी कहा जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर ये दिन भगवान श्रीकृष्ण की सूरज पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इस साल यह एकादशी 9 सितंबर, सोमवार को है। हम आपको बता रहे हैं कुछ खास तरीके जिनके जरिए आप इस शुभ मुहूर्त का भरपूर लाभ ले सकते हैं। 

ऐसे करें पूजा 
व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करें, और ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ कपड़े पहने और भगवान की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। संभव हो तो पूरा दिन उपवास रखें। अगर उपवास रखना मुश्किल हो रहा हो तो एक समय के बाद फल खा सकते हैं।  
इस दिन भगवान वामन की पूजा पूरे विधि-विधान से करें। आप चाहें तो पूजन में किसी ब्राह्मण की मदद भी ले सकते हैं। भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पिएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के पास ही सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी को वेदपाठी ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दें। और आशीर्वाद प्राप्त करें। जो मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस एकादशी की कथा को सुनने से भी वाजपेई यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

व्रत का महत्व
परिवर्तिनी एकादशी पर व्रत करने से वाजपेई यज्ञ का फल मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि जो इस दिन कमलनयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद शुक्ल एकादशी को व्रत और पूजन किया, उसने ब्रह्मा, विष्णु सहित तीनों लोकों का पूजन किया। इसलिए एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान करवट लेते हैं, इसलिए इसको परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं।
 

Share this article
click me!