
पटनाः बिहार की राजनीति में इन दिनों एक नया दृश्य देखने को मिल रहा है। सियासत के दिग्गज नेता, जो आम तौर पर हर सवाल का जवाब देने में माहिर होते हैं, प्रशांत किशोर (पीके) का नाम सुनते ही अचानक खामोश हो जा रहे हैं। कोई हाथ जोड़ लेता है, कोई सवाल टाल देता है, तो कोई मंच छोड़कर चले जाने में ही भलाई समझता है। यह सब कुछ ऐसे वक्त में हो रहा है जब पीके अपने जनसुराज अभियान के जरिए लगातार राज्य सरकार के मंत्रियों और नेताओं की पोल खोलने का दावा कर रहे हैं।
पूर्व सांसद आनंद मोहन अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। जेल की सजा काटकर राजनीति में सक्रिय होने वाले आनंद मोहन से जब मीडिया ने पीके के बारे में सवाल पूछा तो उनका चेहरा गंभीर हो गया। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ लिए और केवल इतना ही कहा, “25 के बाद (विधानसभा चुनाव 2025 के बाद) मिलेंगे। मेरी शुभकामना है।” ध्यान देने वाली बात यह है कि आनंद मोहन कभी मंत्री नहीं रहे हैं और उन पर पीके ने सीधे कोई भ्रष्टाचार का आरोप भी नहीं लगाया। इसके बावजूद उनका यह जवाब राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद से भी जब मीडिया ने पीके पर टिप्पणी करने को कहा तो दृश्य और भी चौंकाने वाला था। एक टीवी कार्यक्रम के दौरान एंकर ने सवाल किया “पीके पर कुछ बोलेंगे?” इस पर तारकिशोर प्रसाद मंच से उठ खड़े हुए। उन्होंने माइक एंकर को लौटाने की कोशिश की, लेकिन देरी हुई तो माइक को कुर्सी पर पटककर गुस्से में मंच से बाहर चले गए। यह प्रतिक्रिया साफ दिखाती है कि वे पीके पर बोलने से बचना चाहते थे।
केंद्रीय मंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने भी पीके के नाम पर हाथ जोड़ दिए। उन्होंने कहा, “प्रशांत किशोर महान आदमी हैं भाई। उनके बारे में मैं कुछ नहीं बोल सकता।” मांझी के इस जवाब में एक अजीब तरह की सावधानी और रणनीति झलकती है। राजनीति के पुराने खिलाड़ी मांझी यह भली-भांति समझते हैं कि पीके पर सीधी टिप्पणी करने का मतलब अपने लिए नई मुश्किलें खड़ी करना हो सकता है।
स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय पर भी पीके ने कई आरोप लगाए हैं। लेकिन जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा, “प्रशांत किशोर पढ़े-लिखे आदमी हैं। मैं उनके बारे में क्यों कोई टिप्पणी करूं?” इसी तरह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिलीप कुमार जायसवाल ने कहा, “मैं अपना काम करता हूं। किसी दूसरे के काम पर नो कमेंट।”
प्रशांत किशोर पर सवाल सुनते ही नेताओं का चुप हो जाना केवल डर का नतीजा नहीं है। इसके पीछे राजनीति की गहरी गणित छिपी है।
टिकट की राजनीति: बिहार में आने वाले विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सभी दलों के नेताओं के परिवारजन भी टिकट की जुगाड़ में हैं। अगर अपने दल से टिकट न मिला तो जनसुराज उनके लिए एक विकल्प हो सकता है। ऐसे में नेता पीके से संबंध खराब करने का जोखिम नहीं उठाना चाहते।
पीके का बढ़ता कद: पिछले कुछ महीनों से पीके लगातार राज्य के मंत्रियों और नेताओं पर भ्रष्टाचार व अकर्मण्यता के आरोप लगा रहे हैं। उनकी जनसभाओं और प्रेस बयानों को जनता गंभीरता से सुन रही है। ऐसे में सीधे टकराव में आकर नेता अनावश्यक विवाद मोल नहीं लेना चाहते।
राजनीतिक रणनीति: कई नेता यह मानते हैं कि पीके की लोकप्रियता और मीडिया कवरेज फिलहाल चरम पर है। वे उन पर हमला बोलकर उन्हें और ज्यादा स्पेस नहीं देना चाहते।
बिहार की राजनीति, सरकारी योजनाएं, रेलवे अपडेट्स, शिक्षा-रोजगार अवसर और सामाजिक मुद्दों की ताज़ा खबरें पाएं। पटना, गया, भागलपुर सहित हर जिले की रिपोर्ट्स के लिए Bihar News in Hindi सेक्शन देखें — तेज़ और सटीक खबरें Asianet News Hindi पर।