लालू यादव के खिलाफ SC-ST एक्ट का शिकंजा? बाबा साहब का अपमान मामले में जा सकते हैं जेल

Published : Jun 15, 2025, 04:10 PM IST
lalu yadav

सार

Lalu Yadav News in Hindi: लालू प्रसाद यादव के जन्मदिन पर बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीर को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने लालू से 15 दिनों में स्पष्टीकरण मांगा है।

Lalu Yadav birthday Controversy: राज्य अनुसूचित जाति आयोग ने राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ सख्त कार्रवाई के संकेत देते हुए 15 दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगने का आदेश जारी किया है। आयोग ने आरोप लगाया है कि हाल ही में अपने जन्मदिन के अवसर पर लालू प्रसाद यादव ने सोशल मीडिया पर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की एक तस्वीर का अपमान किया है, जिसे पूरे देश में खूब देखा और चर्चा में रखा गया है।

आयोग ने स्पष्ट किया है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर न केवल पूरे देश के संविधान के निर्माता हैं, बल्कि समाज के एक सम्मानित नेता हैं। उनके प्रति किया गया अपमानजनक कृत्य पूरे देश की सामाजिक भावना को ठेस पहुंचाता है और संवैधानिक मूल्यों के भी खिलाफ है।

लालू प्रसाद यादव से मांगा स्पष्टीकरण

राज्य अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि डॉ. अंबेडकर का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह न केवल एक व्यक्ति का अपमान है, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ गंभीर चुनौती है। इसलिए आयोग ने लालू प्रसाद यादव से 15 दिनों के अंदर विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है। आयोग ने कहा है कि स्पष्टीकरण संतोषजनक नहीं पाए जाने पर अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। इसके तहत मामला दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

JDU ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया

विपक्ष और सामाजिक संगठन भी इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं। कई दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस घटना की निंदा की है और सख्त कार्रवाई की मांग की है। वहीं, राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता ने इस मामले में तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

दलितों का महान नेता थे बाबा अंबेडकर

डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर को भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक और दलितों का महान नेता माना जाता है। उनका सम्मान भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की नींव है। पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ अपमानजनक पोस्ट और वीडियो की बढ़ती संख्या ने सामाजिक विवाद को जन्म दिया है। ऐसे मामलों में न्यायालय और संबंधित आयोग संवैधानिक आदर्शों की रक्षा के लिए सतर्क रहे हैं।

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