
पटनाः देश की आज़ादी के बाद से बिहार की राजनीति हमेशा ही रंगीन, उतार-चढ़ाव वाली और कभी-कभी उथल-पुथल भरी रही है। इस राज्य में सत्ता की कुर्सी इतनी जल्दी बदलती रही कि कई बार इतिहासकार भी चौंक गए। 1947 के बाद बिहार ने कई चेहरे देखे, कई नेता आए और गए, लेकिन स्थिर शासन का स्वाद बहुत ही कम ही मिल पाया।
बिहार की राजनीतिक कहानी की शुरुआत होती है श्रीकृष्ण सिंह से। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आज़ाद हुआ, तभी से श्रीकृष्ण सिंह ने राज्य की कमान संभाली। उन्होंने लगभग 13 साल 169 दिन तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते हुए बिहार को स्थिरता और विकास का पाठ पढ़ाया।
श्रीकृष्ण बाबू के समय में शिक्षा, सड़कों, प्रशासन और कानून की मजबूत नींव पड़ी। उनके दौर को आज भी बिहार का सबसे स्वर्णिम युग माना जाता है। इस समय राजनीति में न सिर्फ स्थिरता थी, बल्कि जनता और सरकार के बीच भरोसे का माहौल भी बना।
लेकिन जैसे ही श्रीकृष्ण बाबू का दौर समाप्त हुआ, बिहार की राजनीति ने एक नया रंग दिखाया। 1961 से 1990 तक, यानी 29 सालों में 23 मुख्यमंत्री बदल गए। ऐसा लगता था कि सत्ता की कुर्सी पर बैठना एक कठिन खेल बन गया हो। इस दौरान कई मुख्यमंत्री केवल कुछ दिनों से महीनों तक ही पद पर रहे। उदाहरण के तौर पर...
इस अस्थिरता के पीछे कई कारण थे, पार्टी हाईकमान का बिहार पर हस्तक्षेप, जातीय राजनीति, छोटे दलों की सत्ता में पहुंचने की जद्दोजहद। ऐसे समय में जनता की उम्मीदें अक्सर अधूरी रह गईं, और कई बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।
फिर आया 1990 का समय, जब लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। लालू का यह दौर पूरी तरह सामाजिक न्याय और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण से भरा हुआ था। 1990–1997 तक लालू की सत्ता रही, और इसके बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने 1997–2005 तक राज्य की कमान संभाली।
इन 15 सालों में दोनों का कम-से-कम एक कार्यकाल पूरा रहा यानी 5 साल। यह समय बिहार की राजनीति में स्थिरता और सामाजिक बदलाव का प्रतीक माना जाता है। इस दौर में राजनीति केवल सत्ता तक पहुंचने का नहीं बल्कि समाज में न्याय और प्रतिनिधित्व स्थापित करने का भी था।
2005 से अब तक, नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में स्थिरता के प्रतीक बने हैं। उन्होंने 2005–2010 का कार्यकाल पूरा किया। 2010–2015 में कुछ समय के लिए जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने। 2015–2020 में फिर से नीतीश कुमार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
नीतीश कुमार की राजनीति में विकास, सामाजिक योजनाएं और प्रशासनिक सुधार प्रमुख रहे। वे राज्य के सबसे प्रभावशाली और लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री माने जाते हैं। उनके दौर में कई योजनाएं ऐसी शुरू हुईं, जो सीधे जनता के जीवन को प्रभावित करती हैं।
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