आत्मनिर्भर भारत की मिसाल: छत्तीसगढ़ के पेंड्रा की महिलाओं ने बनाए 70 हजार मिट्टी के दीये, दिवाली पर बढ़ी आमदनी

Published : Oct 16, 2025, 01:01 PM IST
Atmanirbhar Bharat Pendra women mitti ke diye diwali 2025

सार

आत्मनिर्भर भारत की मिसाल पेश करते हुए पेंड्रा जिले की महिला स्वसहायता समूहों ने दीपावली पर 70 हजार मिट्टी के दीये और पूजा सामग्री तैयार कर ₹1.11 लाख की बिक्री की। यह पहल आत्मनिर्भर भारत, पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी है।

गौरेला पेंड्रा मरवाही। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को साकार करने में महिला स्वसहायता समूह (SHG) की महिलाएं सक्रिय योगदान दे रही हैं। दीपावली पर्व के अवसर पर महिलाएं मिट्टी के कलात्मक दीये और पूजा सामग्री तैयार कर स्थानीय हाट-बाजारों में बेच रही हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से समृद्ध हो रही हैं।

पेंड्रा जिले की महिलाओं ने बनाए 70 हजार मिट्टी के दीये

जिला प्रशासन और ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से पेंड्रा जनपद की पांच महिला स्वसहायता समूहों की 12 महिलाओं ने मिलकर अब तक 70 हजार मिट्टी के दीये तैयार कर लिए हैं। इसके साथ ही महिलाएं अगरबत्ती, बाती और तोरण जैसी सामग्री भी तैयार कर रही हैं।

ये सभी उत्पाद स्थानीय बाजारों- कोटमी, नवागांव और कोड़गार हाट बाजार — में बेचे जा रहे हैं। समूह द्वारा बनाए गए दीये रायपुर में आयोजित सरस मेला में भी प्रदर्शित और बेचे जा रहे हैं।

1 लाख 11 हजार रुपये की बिक्री से मिली आर्थिक मजबूती

महिला समूहों ने अब तक 1 लाख 11 हजार 500 रुपये की दीयों और पूजा सामग्री की बिक्री की है। इस पहल से महिलाओं को अच्छा मुनाफा हो रहा है और उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है।

महिला उद्यमियों की सफलता की कहानी

ग्राम झाबर निवासी श्रीमती क्रांति पुरी, जो समूह की सदस्य हैं, ने बताया कि इस काम से उन्हें लगभग 9 हजार रुपये का मुनाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि इस साल की दिवाली उनके लिए बहुत खास बन गई है और वे इस आय से बेहद खुश हैं।

ब्लॉक मिशन प्रबंधक सुश्री मंदाकिनी कोसरिया ने बताया कि इस पहल से पांच महिला स्वसहायता समूहों के परिवारों को सीधा आर्थिक लाभ मिला है। महिलाएं अब आत्मनिर्भर बन रही हैं और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने में सक्षम हो रही हैं।

पर्यावरण संरक्षण और परंपरा का संगम

यह पहल न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन कर रही है, बल्कि परंपरागत मिट्टी के दीयों के उपयोग को भी बढ़ावा दे रही है। मिट्टी के दीयों की बिक्री से जहां महिलाओं की आमदनी बढ़ी है, वहीं यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल विकल्प साबित हो रहा है।

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