Shocking Crime : देश का ऐसा राज्य...जहां 115 दिन में 30 पत्नियों की हुई हत्या, हर एक का कातिल पति

Published : Jun 24, 2025, 09:35 AM ISTUpdated : Jun 24, 2025, 04:56 PM IST
Chhattisgarh wife murder data

सार

Wife murder data: सोनम रघुवंशी केस के मीम्स और वायरल आरोपों के बीच छत्तीसगढ़ में सामने आई दिल दहला देने वाली सच्चाई – बीते 115 दिनों में 30 पत्नियों की हत्या, कई मामलों में कारण बने शक, नशा और यौन इनकार। क्या हम हिंसा को सामान्य मान बैठे हैं?

Chhattisgarh Shocking News: जब इंदौर में सोनम रघुवंशी को अपने पति राजा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया, तो सोशल मीडिया पर मीम्स, वीडियो और चुटकुले की बाढ़ आ गई। ‘घातक पत्नियां’, ‘खतरनाक बीवी’ और ‘लव मर्डर’ जैसे शब्द वायरल हो गए। लेकिन इसी बीच, छत्तीसगढ़ से आए आंकड़े बता रहे हैं एक खामोश कत्लेआम की कहानी – बीते 115 दिनों में 30 पत्नियों को उनके पतियों ने ही मार डाला।

हर 4 दिन में एक पत्नी की हत्या–क्या यह अब सामान्य हो गया है?

छत्तीसगढ़ पुलिस के मुताबिक़ इन हत्याओं में से 10 से ज्यादा मामले ईर्ष्या या चरित्र पर शक से जुड़े हैं। 6 मामले नशे में हत्या, और 2 हत्याएं यौन संबंध से इनकार के बाद हुईं। बाकी हत्याएं घरेलू हिंसा, दहेज विवाद या मानसिक प्रताड़ना से जुड़ी हैं। इन घटनाओं में आरोपी अधिकांश मामलों में पति हैं – जिनमें से कुछ ने साजिश की और कुछ ने अपराध को दुर्घटना बताने की कोशिश की।

सिर्फ शक में पत्नी का गला रेत दिया

धमतरी की घटना ने पुलिस को भी हिला दिया। तीन महीने पहले शादी करने वाले धनेश्वर पटेल ने अपनी पत्नी के साथ रोमांटिक फोटो पोस्ट की, और तीन दिन बाद उसी पत्नी को दरांती से मार डाला। वजह? उसे शक था कि पत्नी किसी और से बात कर रही थी।

दुर्घटना नहीं, थी हत्या की साजिश!

22 मार्च को बालोद में एक स्कूल टीचर की सड़क दुर्घटना में मौत हुई, लेकिन जांच से पता चला कि उसके पति शीशपाल और दोस्त कयामुद्दीन ने मिलकर पहले हत्या की और फिर एक्सीडेंट का नाटक किया।

विशेषज्ञों की चेतावनी – हम हिंसा को सामान्य बना रहे 

समाजशास्त्री प्रो. डीएन शर्मा कहते हैं, “जब पुरुष हत्या करते हैं, तो उन्हें ‘क्रोधी’, ‘अवसादग्रस्त’ कहा जाता है। लेकिन जब एक महिला आरोपी बनती है, तो पूरा लिंग निशाने पर आ जाता है। सोनम जैसी घटनाएं अपवाद हैं, लेकिन हम उन्हें सामान्य और बाकियों को नजरअंदाज कर रहे हैं।”

जरूरत है बहस की, ट्रोल की नहीं

छत्तीसगढ़ के ये आंकड़े केवल क्राइम नंबर नहीं, एक खतरे की घंटी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये केस मीम्स और जजमेंट नहीं, बल्कि डायलॉग, सुरक्षा और मानसिक हेल्थ इंटरवेंशन की मांग करते हैं। हमें सवाल उठाना होगा – क्या हम रिश्तों में प्यार सिखा रहे हैं, या संदेह और स्वामित्व? यह इंगित करते हैं कि हम रिश्तों में संवाद नहीं, संदेह और अधिकार का बीज बो रहे हैं। सोशल मीडिया का ट्रोल कल्चर असल समस्याओं पर परदा डाल रहा है।

 

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