
गांधीनगर। 7 अक्टूबर 2025 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के सेवा और समर्पण के 24 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में गुजरात राज्य 7 से 15 अक्टूबर तक विकास सप्ताह मना रहा है। इस अवसर पर 14 अक्टूबर को ‘कृषि विकास दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने हमेशा किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया है, जिसके परिणामस्वरूप आज गुजरात के किसान टिकाऊ कृषि पद्धतियों से बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं। मुख्यमंत्री श्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व में राज्य प्राकृतिक खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति कर रहा है।
प्राकृतिक खेती की बात आते ही ‘आपणुं डांग, प्राकृतिक डांग’ अभियान का नाम स्वतः याद आता है। यह अभियान वर्ष 2021 में शुरू हुआ था, जब डांग जिले को पूरी तरह से रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती वाला जिला घोषित किया गया। इस पहल ने आदिवासी किसानों के जीवन में बड़ा बदलाव लाया है। आहवा तहसील के धवलीदोड़ गांव की मंगीबेन इस परिवर्तन की प्रतीक बनकर उभरी हैं। उन्होंने प्राकृतिक खेती अपनाकर न सिर्फ अपनी आय बढ़ाई, बल्कि ‘लखपति दीदी’ के रूप में दूसरों के लिए प्रेरणा बनीं।
मंगीबेन की सफलता का सफर साहस और मेहनत से भरा है। मिशन मंगलम (एनआरएलएम) के तहत एक फील्ड कोऑर्डिनेटर ने उन्हें स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। डांग क्षेत्र में उगने वाले स्थानीय श्रीअन्न — नागली (रागी) — की पौष्टिकता और बाजार संभावनाओं को समझते हुए उन्होंने इसका प्रसंस्करण शुरू किया। मंगीबेन ने अपने समूह की महिलाओं के साथ मिलकर नागली से आटा, लड्डू, कुकीज और अन्य स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद बनाने की शुरुआत की।
स्वयं सहायता समूह से जुड़ने से पहले मंगीबेन मनरेगा के तहत मौसमी खेतिहर मजदूर के रूप में काम करती थीं। लेकिन ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्था (आरएसईटीआई) से उन्होंने श्रीअन्न प्रसंस्करण का निःशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त किया। इस प्रशिक्षण ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। जब डांग को प्राकृतिक खेती वाला जिला घोषित किया गया, तब मंगीबेन ने भी ऑर्गेनिक नागली की खेती शुरू की। इससे उनके उत्पादों की पौष्टिकता और बाजार मूल्य दोनों में वृद्धि हुई।
मंगीबेन ने अपने उद्योग की शुरुआत में ही पहले महीने 15,000 रुपए के उत्पाद बेचे। इसके बाद उन्होंने अपने समूह की 10 और महिलाओं को जोड़ा। आज उनकी यूनिट नागली से बने उत्पादों की प्रतिमाह लगभग 60,000 रुपए की बिक्री करती है और उन्हें लगभग 20,000 रुपए की मासिक आय होती है। सरकार की सहायता से वे विभिन्न प्रदर्शनियों और मेलों में हिस्सा लेती हैं, जिससे उनके उत्पादों को बड़ा बाजार मिला है। साथ ही, प्राकृतिक खेती के राष्ट्रीय मिशन के तहत उन्हें ब्रांडिंग और प्रमोशन का भी लाभ मिला है।
मंगीबेन का खेतिहर मजदूर से सफल उद्यमी बनना इस बात का प्रमाण है कि प्राकृतिक खेती से न केवल किसानों की आय बढ़ सकती है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। उनकी कहानी ‘लखपति दीदी’ पहल को भी मजबूत करती है, जो महिलाओं को नियमित रोजगार और आर्थिक स्वतंत्रता दिलाने का माध्यम बनी है। यह मॉडल स्थानीय संसाधनों के उपयोग, सामुदायिक सहयोग और टिकाऊ विकास का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करता है।
यह भी पढ़ें
‘मेरा देश पहले’ शो: गांधीनगर में नए भारत के रूपांतरण की प्रेरक कहानी, PM मोदी के यात्रा की एक झलक