भारत के गौरव का दर्पण 'हम और यह विश्व', डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक का जगदीप धनखड़ ने किया विमोचन

Published : Nov 21, 2025, 08:56 PM IST
book launch hum aur yah vishva

सार

भोपाल के रवीन्द्र भवन में सुरुचि प्रकाशन की डॉ. मनमोहन वैद्य द्वारा लिखी पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ का विमोचन हुआ। कार्यक्रम में भारत की अवधारणा, संस्कृति, अध्ययन पर चर्चा हुई। पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पुस्तक को भारत के गौरव का दर्पण बताया।

भोपाल। भोपाल की रवींद्र भवन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक डॉ. मनमोहन वैद्य की पुस्तक 'हम और यह विश्व' का विमोचन भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने किया। गरिमामय कार्यक्रम में  भारत की मूल अवधारणा, आत्मगौरव, सांस्कृतिक चेतना और अध्ययनशील परंपरा पर कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे। 

 इस  मौके पर श्री आनंदम धाम आश्रम, वृंदावन के पीठाधीश्वर  ऋतेश्वर जी महाराज, पूर्व उपराष्ट्रपति  जगदीप धनखड़, जागरण के समूह संपादक  विष्णु त्रिपाठी, सुरुचि प्रकाशन के प्रेसीडेंट राजीव तुली और लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने संघ की विचारधारा को  प्रकट किया।

'हम और यह विश्व' पुस्तक के लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने भारतीयता, अध्ययन और विमर्श की जरुरत पर बल दिया, उन्होंने अपने भाषण में कहा कि भारत को बनाने से पहले जरुरी है कि हम पहले भारत को माने उसके अस्तित्व को पहचान करें,  उसके बाद भारत को जाने, फिर भारत के बने और उसके बाद भारत को बनाएं। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत अपने उस एक्सपीरिएंस से की जिसने उन्हें लेखन की  तरफ मोड़ दिया। वैध ने बताया कि, संघ के तृतीय वर्ष प्रशिक्षण वर्ग में जब  प्रणब मुखर्जी को संबोधन के लिए आमंत्रित किया गया था, तब कुछ लोगों ने बिना वजह उनका विरोध किया। इस एक घटना ने उन्हें लिखने के लिए इंस्पायर किया था। वैध ने बताया कि वर्ष 2018 में केवल 1 से 6 जून के बीच 378 लोगों ने उनसे मिलने की रिक्वेस्ट की थी, जो यह दर्शाता है कि संघ को लेकर समाज में संवाद की गहरी रूचि है।

उन्होंने बताया कि संघ पर बेवजह किया गया विरोध कई बार संघ की स्वीकार्यता को ही बढ़ाता है। जॉइन आरएसएस वेबसाइट का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि सिर्फ उस वर्ष अक्टूबर माह में ही 48,890 लोगों ने स्वयंसेवक के रूप में जुड़ने कामन बनयाा। यह भारत के सामाजिक परिवर्तन और संगठन के प्रति बढ़ते आकर्षण को दर्शाता है।

भारत की अवधारणा पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हमें उन तमाम स्टेटमेंट  को समझना होगा जो हमारी सोच को प्रभावित करते हैं। उन्होंने पॉप्युलर गीत “सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा” की पंक्ति “हम बुलबुले हैं इसके” पर बताया कि ऐसे भाव हमें अपनी मूल चेतना से दूर करते हैं। उन्होंने कहा कि यह कहना गलत है कि भारत में सांस्कृतिक विविधता है। बल्कि  यह कहना ज्यादा सही है कि भारत की संस्कृति एक ही है जो विविध रूपों में प्रकट होती है। भारत में विविधता मूल संस्कृति की शाखाएं हैं, उसका ऑप्शन नहीं।

उन्होंने कहा कि वेलफेयर स्टेट का कॉन्सेप्ट भारत की अपनी अवधारणा नहीं है, बल्कि पश्चिम से आया विचार है। भारत की परंपरा समाज-आधारित दायित्व पर बेस्ड रही है। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक चार अहम खंडों में विभाजित है और प्रत्येक खंड भारत के विमर्शों पर नया विजन देता है।

भारत की परंपरा का मूल हैअध्ययन– विष्णु त्रिपाठी

जागरण समूह के समूह संपादक विष्णु त्रिपाठी ने कहा कि यह किताब सिर्फ घर या लायब्रेरी में कलेक्शन के लिए नहीं लिखी गई है, बल्कि इसके अध्ययन, मनन और भाषा की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा किसी एक पुस्तक या एक मत पर आधारित नहीं है। यहां ज्ञान की अनेक धाराएं हैं। हमारी आध्यात्मिकता भी अध्ययन और चिंतन से ही उत्पन्न लेती है। उन्होंने भारत की पहचान पर उठने वाले प्रश्नों पर साफ कहा कि भारत हिंदू राष्ट्र है या नहीं जैसी बहस अध्ययन के अभाव से उत्पन्न होती हैं। जब भारत और भारतीयता पर गौरव का भाव स्थापित हो जाता है, तो ऐसे प्रश्न  खुद खत्म हो जाते हैं। उन्होंने गुरुनानक देव जी का उदाहरण देते हुए बताया कि वे रामनाम के परम उपासक थे और बाबर की आलोचना सीधे अपने भजनों में करते हैं। इसी रामनाम के प्रसार के साथ वे बगदाद तक पहुंचे थे। यह उदाहरण भारतीय अध्यात्म की गहराई और व्यापकता दोनों को दिखाता है।

“सोए हुए को जगा देगी पुस्तक” – पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

पूर्व उपराष्ट्रपति  जगदीप धनखड़ ने कहा कि भोपाल आकर इस पुस्तक पर बोलने का अवसर उनके लिए बड़े ही सौभाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि हम और यह विश्व सिर्फ एक पुस्तक नहीं, बल्कि भारत के गौरवशाली अतीत का दर्पण और भविष्य निर्माण की दिशा दिखाने वाला ग्रंथ है। धनखड़ ने कहा कि यह पुस्तक आठ वर्षों के अनुभवों का संग्रह है, जिसमें प्रणब मुखर्जी पर दो महत्त्वपूर्ण लेख भी शामिल हैं।

अंग्रेजी में भाषण  देते हुए उन्होंने कहा कि मैं अंग्रेजी में इसलिए बोल रहा हूं ताकि जो लोग देश की पॉजिटिव इमेज को समझना नहीं चाहते, वे भी स्पष्ट और सीधे शब्दों में भारत के एक्चुअल  स्वरूप से परिचित हों। उन्होंने यह भी कहा कि आज का भारत तेजी से बदल रहा है, हर एरिया में प्रोग्रेस कर रहा है और विश्व मंच पर एक मजबूत, आत्मविश्वासी और निर्णायक देश के रूप में उभर रहा है।

 सुरुचि प्रकाशन ने बढ़ाया अपना दायरा

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में राजीव तुली ने सुरुचि प्रकाशन की परंपरा और भविष्य की दिशा का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि सुरुचि प्रकाशन समाज जीवन के विविध महत्वपूर्ण विषयों पर लगातार पुस्तकों, शोध कृतियों और विचारपरक सामग्री का प्रकाशन कर रहा है।

उन्होंने बताया कि आने वाले महीनों में वॉकिज़्म, पंच परिवर्तन और अन्य बौद्धिक मुद्दों पर भी महत्वपूर्ण प्रकाशन सामने आने वाले हैं। राजीव तुली ने कहा कि “हम और यह विश्व” पुस्तक के पाठन के दौरान ऐसा महसूस होता है जैसे पाठक और पुस्तक के बीच सीधा संवाद स्थापित हो रहा हो।

उन्होंने यह भी साफ किया कि भले ही इस पुस्तक का English version पहले प्रकाशित हुआ था, लेकिन मौजूदा संस्करण में कई महत्त्वपूर्ण और नई जानकारियां जोड़ी गई हैं। यह पुस्तक आज के समाज के बड़े विमर्शों को पढ़ने, समझने और उनके भाष्य लिखने के लिए अत्यंत उपयोगी है।

कार्यक्रम में गणमान्य नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता और बौद्धिक जगत से जुड़े अनेक प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. साधना बलवटे ने किया। अंकुर पाठक ने कृतज्ञता व्यक्त करते हुए उपस्थित सभी अतिथियों, गणमान्यजनों और पुस्तक प्रेमियों का धन्यवाद किया। वंदे मातरम् के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

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