"मेरी पत्नी मर रही थी... और सुप्रीम कोर्ट खामोश रहा!" MP हाई कोर्ट के जज का छलका दर्द

Published : May 21, 2025, 12:15 PM IST
Justice Duppala Venkat Ramana

सार

मप्र हाई कोर्ट के जज दुपल्ला वैंकट रमन ने अपनी बीमार पत्नी के इलाज के लिए ट्रांसफर की मांग की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कोई सुनवाई नहीं की। उन्होंने न्यायपालिका पर गंभीर आरोप लगाए और कहा कि उनका ट्रांसफर गलत इरादे से किया गया था, जो चौंकाने वाला है।

MP High Court Judge Transfer: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज दुपल्ला वैंकट रमन ने अपनी बीमार पत्नी के इलाज के लिए ट्रांसफर की मांग की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई सुनवाई नहीं की। उन्होंने इस फैसले पर गहरा दर्द व्यक्त किया और न्यायपालिका पर भी सवाल उठाए। आइए जानें इस विवादित मामले की पूरी कहानी।

पत्नी की गंभीर बीमारी और ट्रांसफर की मांग

न्यायमूर्ति दुपल्ला वैंकट रमन ने बताया कि उनकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार हैं। वे अपने ट्रांसफर के लिए विकल्प देने को कहे गए थे, जिनमें से उन्होंने कर्नाटक को चुना था ताकि उनकी पत्नी का बेहतर इलाज हो सके। लेकिन यह विकल्प सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया। 1 नवंबर 2023 को मप्र हाई कोर्ट में पद ग्रहण करने के बाद 19 जुलाई 2024 को उन्होंने पुनः ट्रांसफर के लिए आवेदन किया, परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया।

सुप्रीम कोर्ट की खामोशी पर न्यायमूर्ति का दर्द

जज रमन ने कहा, "मैंने उम्मीद की थी कि मानवता और मेडिकल आधार पर मेरा आवेदन स्वीकार होगा, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।" उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की इस खामोशी पर गहरा दुख जताया और बताया कि उनकी समस्या का समाधान नहीं हो सका। यह बयान न्यायपालिका के अंदर एक गंभीर समस्या को उजागर करता है।

ट्रांसफर को गलत इरादे से बताया

अपने फेयरवेल के दौरान न्यायमूर्ति रमन ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि उनका ट्रांसफर गलत इरादे से किया गया था, शायद किसी के अहंकार को तुष्ट करने के लिए। उन्होंने यह भी कहा, "मैं खुश हूं कि मैंने उनके अहंकार को संतुष्ट कर दिया, अब भगवान न्याय करेगा।" यह बयान न्यायपालिका में विवादों और मनोवैज्ञानिक दबाव की झलक देता है।

न्यायपालिका में सम्मान और करियर की यात्रा

अपने भाषण में जज रमन ने मप्र हाई कोर्ट के न्यायमूर्तियों के व्यवहार की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि उनके बड़े भाई ने उनकी पढ़ाई में मदद की, जिससे वे वकालत के बाद न्यायाधीश बने। उन्होंने कनिष्ठ न्यायाधीश से लेकर वरिष्ठ न्यायाधीश तक का सफर तय किया, जो उनके समर्पण और संघर्ष की कहानी है।

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