
Mumbai Girl Aarohi Kidnapped Story: 20 मई, 2025 की रात मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस पर 4 साल की एक छोटी बच्ची लाइट पिंक कलर की फ्रॉक पहने अपनी मां की गोद में सो गई। उसके माता-पिता सोलापुर के बेहद सीधे-सादे परिवार से हैं, जो पिता के इलाज के लिए मुंबई आए थे। वे थके हुए थे और बस एक पल के लिए मां ने अपनी आंखें बंद कर लीं। लेकिन जब उनकी आंख खुली तो बेटी गायब थी।
करीब छह महीने तक बच्ची के माता-पिता ने पुलिस थाने के कई चक्कर लगाए। लगातार मुंबई की लोकल ट्रेनों, झुग्गियों, अनाथालयों और अजनबियों को बेटी की मुड़ी-तुड़ी तस्वीर दिखाकर तलाशते रहे। बच्ची की तलाश में पिता कई दिनों तक सोए नहीं, मां ने भी खाना नहीं खाया। दोनों के मुंह से हर वक्त बस एक ही नाम निकलता था..आरोही, कोई मेरी आरोही को ला दो।
मुंबई से करीब 1500 किलोमीटर दूर वाराणसी में, एक छोटी-सी लड़की, जिसे अपना असली नाम याद नहीं था, खुद “काशी” कहना सीख रही थी। वह जून 2025 में नंगे पैर, डरी हुई रेलवे ट्रैक के पास रोती हुई मिली थी। इसके बाद अनाथालय ने उसे खाना, बिस्तर और एक नया नाम दिया। वह आसानी से मुस्कुरा देती थी, क्योंकि बच्चे हमेशा मुस्कुराते हैं, लेकिन कभी-कभी रात में वह अपने कंबल का किनारा पकड़कर “आई” कहती थी। मराठी में वो अपनी मां को आई कहकर बुलाती थी, लेकिन कोई समझ नहीं पा रहा था।
इधर, मुंबई में पुलिस ने आरोही के गुमशुदा वाले पोस्टर छापे और उन्हें लोकमान्य तिलक टर्मिनस से लेकर भुसावल और वाराणसी कैंट तक हर प्लेटफॉर्म पर चिपका दिए। उन्होंने अखबारों में ऐड दिए, पत्रकारों से मदद की भीख मांगी। उम्मीद के जिंदा रहने के लिए छह महीने बहुत लंबा समय है। हालांकि, कुछ पुलिस अफसर आरोही की फोटो अपनी शर्ट की जेब में ऐसे रखते थे, मानो वह उनकी अपनी ही बेटी हो। पुलिस ने आरोही की तलाश के लिए ऑपरेशन शोध चलाया।
13 नवंबर को, वाराणसी में एक लोकल रिपोर्टर ने आरोही का पोस्टर देखा। उसे कुछ समझ आया। उसने एक लड़की को देखा था, जो नींद में मराठी शब्द बोल रही थी। उसने फोन किया और अगली सुबह एक पुलिसवाला वाराणसी में लैपटॉप के सामने बैठा था और उसने एक वीडियो कॉल खोला। स्क्रीन पर गुलाबी रंग की फ्रॉक पहने एक छोटी लड़की दिखाई दी। ये वही ड्रेस थी, जो उसने उस दिन पहनी थी, जब वो गायब हुई थी। मुंबई में पुलिसवाले के पीछे खड़ी मां ने अपनी बेटी को देखा और बिना आवाज किए गिर पड़ी। इस दौरान पिता ने कहा, यह मेरी आरोही है… यह मेरी बच्ची है…।
इधर, अगले ही दिन यानी 14 नवंबर 2025 को जब प्लेन मुंबई एयरपोर्ट पर लैंड हुआ, तो क्राइम ब्रांच पहले से ही उसका इंतजार कर रही थी। उन्होंने उसके लिए गुब्बारे और एक नई फ्रॉक खरीदी थी, जो फिरोजी रंग की थी। लेकिन बच्ची जैसे ही प्लेन से बाहर निकली तो उसने बड़ी संख्या में खाकी वर्दी वालों को देखा। इसके बाद उसने कुछ ऐसा किया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। वह तेजी से उन पुलिसवालों की तरफ भागी।
आरोही ने अपने नन्हे पैर हिलाते हुए हाथ फैलाए और पास ही खड़े पुलिस ऑफिसर की गोद में जा समाई। इसके बाद उसके चेहरे पर जो हंसी दिखी वो बरबस ही किसी का भी कलेजा पिघला देगी। पुलिस ऑफिसर ने आरोही को ऊपर उठाया और गले से लगा लिया। वो भी उसके गले से ऐसे लिपटी, जैसे उसके परिवार को ही कोई सदस्य हो और आरोही उसे बहुत पहले से जानती हो।
आरोही के माता-पिता मारे खुशी के जोर-जोर से रो रहे थे। बाद में पुलिस वाले बेटी को मां-बाप के पास ले गए। मां ने बार-बार उसका चेहरा छुआ और चूमा, मानो वह ये जांच रही हो कि ये उसकी अपनी आरोही ही है ना। वहीं, पिता ने घुटनों के बल बैठते हुए माथा अपनी बच्ची के छोटे-छोटे पैरों पर रख दिया और सिसकते हुए कुछ ऐसे शब्द कहे, जो शायद भगवान के सिवा कोई और नहीं समझ सकता।
और छोटी बच्ची? वह बस मुस्कुराती रही। अपने माता-पिता और पुलिसवालों की तरफ बार-बार निहारती रही, शायद इस बात से अनजान कि उसने पूरे पुलिस स्टेशन को एक रोते, हंसते, प्रार्थना करते परिवार में बदल दिया था। छह महीने का अंधेरा बिल्कुल ऐसे छंट गया था, मानों सुबह धूप निकलने के बाद कोहरा। आरोही अब अपने घर आ चुकी थी। अब एक मां फिर से लोरियां गा रही है। आज, एक पिता नींद में मुस्कुरा रहा है। खाकी वर्दी सिर्फ चोरों को ही नहीं पकड़ती। कभी-कभी यह खोए हुए बच्चों को उनकी मांओं के दिल तक वापस भी लाती है।
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