
Bal Thackeray Legacy War: महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा विवाद (Maharashtra Language Row) एक नई राजनीतिक इबारत लिखने की पहल है। मराठी को लेकर मचे बवाल के बीच सियासी तूफान उस समय आ गया जब बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी सरकार के मंत्री प्रताप सरनाईक ने विपक्षी MNS (Maharashtra Navnirman Sena) के ठाणे प्रदर्शन में शामिल होने पहुंच गए। हालांकि, मनसे कार्यकर्ताओं ने उन्हें ‘गद्दार’ कहकर विरोध स्थल से बाहर निकाल दिया। लेकिन उनका विरोध प्रदर्शन में शामिल होने पहुंचना राजनीतिक के जानकारों को हैरान कर दिया है। सरकार के जिम्मेदार मंत्री का प्रदर्शन में पहुंचना राज्य की महायुति सरकार में सबकुछ ठीक नहीं होने का भी संकेत माना जा रहा है। यह शक उस समय और गहराता जा रहा जब राज्य के उप मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे अपने मंत्री को लेकर कोई बयान नहीं दिए।
उधर, प्रदर्शन में शामिल होने के पहले सरनाइक ने अपनी पुलिस पर ही आरोप लगाते हुए सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने पुलिस की कार्रवाई को गलत बताया और MNS के मराठी आंदोलन को शांतिपूर्ण और उचित बताया।
राजनीति के जानकारों की मानें तो प्रताप सरनाइक का इस विरोध में शामिल होना संयोग नहीं बल्कि रणनीतिक हो सकता है। शिंदे गुट भले ही शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न अपने पास रखे हुए है लेकिन मराठी बनाम गैर-मराठी की इस लड़ाई में राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले दल सड़क पर उतर चुके हैं। माना जा रहा है कि एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) इस समय राजनीतिक 'Fear Of Missing Out' यानी FOMO के शिकार नजर आ रहे हैं, जहां वे अपनी पुरानी पार्टी के स्टाइल में आंदोलन होता देख राजनीतिक बढ़त खोते हुए महसूस कर रहे हैं।
राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे (Raj-Uddhav Thackeray) करीब दो दशक बाद फिर एक मंच पर आए हैं। इस मिलन से एकनाथ शिंदे की चिंता बढ़ गई है क्योंकि अब ठाकरे परिवार एकजुट होकर बाल ठाकरे की विरासत (Bal Thackeray Legacy) पर दावा कर सकता है। लोकसभा चुनावों में उद्धव ठाकरे गुट (Shiv Sena UBT) ने शिंदे गुट से ज्यादा सीटें जीतकर यह साबित कर दिया कि जनता अब असली और नकली में फर्क समझ रही है।
इस पूरे विवाद के केंद्र में है मुंबई की सत्ता की चाबी माने जाने वाले BMC चुनाव 2025 (Brihanmumbai Municipal Corporation)। शिंदे की भाजपा से नजदीकी अब 'anti-Marathi' टैग की वजह बन गई है जिसे उद्धव गुट लगातार भुना रहा है।
हाल की रैली के बाद शिंदे ने राज ठाकरे की भाषा पर चिंता को जायज बताया लेकिन उद्धव ठाकरे को गुस्से और सत्ता की लालसा से भरपूर नेता कहा। इससे साफ है कि शिंदे अब भी राज ठाकरे को अपनी तरफ लाने की कोशिश में हैं।
शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने शिंदे पर सीधा हमला करते हुए कहा कि अगर शिंदे BJP सांसद निशिकांत दुबे की टिप्पणी पर पीएम मोदी और अमित शाह से बात नहीं कर सकते तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। राउत ने यहां तक कह डाला कि अगर अभी भी शिंदे बाल ठाकरे की तस्वीरें अपने दफ्तर में लगाते हैं, तो वो दिखावा है। उन्हें अपनी दाढ़ी तक मुंडवा लेनी चाहिए।
बहरहाल, महाराष्ट्र की राजनीति में भाषाई विवाद एक बार फिर नए समीकरण की ओर इशारा कर रहे हैं। राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अपनी पारिवारिक विरासत को बचाने के लिए आक्रामक नजर आ रहे साथ ही मराठी समाज को एकजुट कर अपने पक्ष में माहौल बनाने में लगे हुए हैं तो दूसरी ओर शिंदे जो खुद को शिवसेना का वारिस बताते हैं, इस मुद्दे पर शिवसैनिक वाले तेवर को खोने से चिंतित हैं। बीजेपी इस मुद्दे पर फंसी हुई है क्योंकि महाराष्ट्र में बीएमसी चुनाव और बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि मराठी भाषा विवाद महाराष्ट्र की राजनीति में नए समीकरण गढ़ेगा।
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