
Mumbai loudspeaker ban: भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई अब ‘लाउडस्पीकर मुक्त’ शहर बन चुकी है। मुंबई पुलिस आयुक्त देवेन भारती ने हाल ही में घोषणा की कि पूरे शहर के धार्मिक स्थलों से 1,500 से अधिक लाउडस्पीकर हटाए जा चुके हैं। यह कार्रवाई केवल धार्मिक संरचनाओं तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसका दायरा पूरे शहर में फैला था और इसका मकसद था—ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण। इस अभियान के पीछे था बॉम्बे हाई कोर्ट का एक ऐतिहासिक आदेश, जिसने पुलिस को निर्देश दिया था कि वे ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले लाउडस्पीकरों के खिलाफ तत्काल और प्रभावी कार्रवाई करें।
जनवरी 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो हाउसिंग सोसायटीज़—जागो नेहरू नगर रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन और शिवसृष्टि को-ऑप हाउसिंग सोसाइटीज एसोसिएशन लिमिटेड—की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया था। याचिका में दावा किया गया था कि मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर सुबह के समय ‘अज़ान’ के दौरान क्षेत्र में शांति भंग कर रहे हैं और यह ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 का उल्लंघन है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह साफ किया कि “लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किसी भी धर्म का मौलिक हिस्सा नहीं है और कोई भी यह दावा नहीं कर सकता कि इसके बिना उसके धार्मिक अधिकार प्रभावित होंगे।”
मुंबई पुलिस प्रमुख देवेन भारती के अनुसार, यह पूरी कार्रवाई समाज के विभिन्न वर्गों, धार्मिक नेताओं और राजनीतिक दलों के साथ विचार-विमर्श के बाद की गई। उन्होंने कहा कि यह किसी विशेष धर्म को निशाना बनाने की कार्रवाई नहीं थी, बल्कि एक सामूहिक प्रयास था जो न्यायपालिका और शासन के निर्देशों के अनुरूप था। उन्होंने बताया कि "हमने समुदाय और धार्मिक नेताओं से बात की, उन्हें समझाया कि यह कार्रवाई सभी के लिए है, किसी एक के खिलाफ नहीं।" उन्होंने यह भी बताया कि इस अभियान में 1,500 से अधिक लाउडस्पीकर हटाए गए और अब पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि ये दोबारा ना लगाए जाएं।
देवेन भारती ने यह भी स्पष्ट किया कि धार्मिक आयोजनों, पर्व-त्योहारों या विशेष अवसरों पर लाउडस्पीकर के उपयोग की अस्थायी अनुमति दी जा सकती है, लेकिन वह भी स्थानीय प्रशासन की अनुमति और ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण नियमों के दायरे में ही होगी।
यह सवाल अब सबके मन में है—क्या यह फैसला स्थायी है? क्या अन्य शहर भी इसे अपनाएंगे? मुंबई जैसी महानगरी जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग एक साथ रहते हैं, वहां ऐसा फैसला न केवल प्रशासनिक रूप से चुनौतीपूर्ण था, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील था। हालांकि, इस फैसले को जनता का मिश्रित समर्थन मिला है। कुछ लोग इसे ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ बड़ी जीत मानते हैं, तो कुछ इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दे रहे हैं। लेकिन न्यायालय का रुख स्पष्ट है—शोर शांति से बड़ा नहीं हो सकता।
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