टॉयलेट में रिश्वत की डील: पक्ष में फैसले के लिए 15 लाख की डिमांड, क्लर्क अरेस्ट-जज फरार

Published : Nov 18, 2025, 05:21 PM IST
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सार

मुंबई में एक जज पर रिश्वतखोरी का आरोप है। उनके क्लर्क को ज़मीन विवाद में पक्ष में फैसला देने के लिए ₹15 लाख की रिश्वत लेते हुए ACB ने रंगे हाथों पकड़ा। जज मुख्य आरोपी हैं और ACB उनकी जांच के लिए हाईकोर्ट से इजाजत ले रही है।

मुंबई: ग्राम पंचायत से लेकर संसद तक, आज हर जगह भ्रष्टाचार भरा पड़ा है। अब तक लोगों को न्याय व्यवस्था पर थोड़ा भरोसा था। कई लोगों को उम्मीद थी कि कम से-कम अदालत तो हमें न्याय दिलाएगी। लेकिन अब कुछ ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि अदालत में भी आपको न्याय नहीं मिलेगा। जी हां, एक मामले में सही फैसला सुनाने के लिए रिश्वत मांगने के आरोप में पिछले हफ्ते एसीबी ने एक कोर्ट क्लर्क को गिरफ्तार किया है। एसीबी अधिकारियों ने बताया है कि इस मामले में मुंबई की एक निचली अदालत के जज मुख्य आरोपी हैं और अब एसीबी अधिकारी उनके खिलाफ जांच के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से इजाजत लेने की तैयारी कर रहे हैं।

सही फैसला सुनाने के लिए मांगी रिश्वत

जमीन विवाद के एक मामले में एक व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाने के लिए ₹15 लाख की रिश्वत लेने के आरोप में एसीबी अधिकारियों ने पिछले हफ्ते सिविल कोर्ट के क्लर्क-कम-टाइपिस्ट चंद्रकांत वासुदेव को रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। इस गिरफ्तारी के दौरान एसीबी अधिकारियों को पता चला कि इस मामले में जज भी मुख्य रूप से शामिल हैं। पकड़े गए क्लर्क और जज के बीच फोन पर हुई बातचीत से यह साबित हो गया है कि इस मामले में जज ही मुख्य रूप से शामिल हैं। घटना के बाद जज एजाजुद्दीन सलाउद्दीन काजी लापता हो गए हैं। वह मुंबई के मझगांव की सिविल कोर्ट में एडिशनल सेशंस जज हैं।

टॉयलेट में पेशाब करते हुए रिश्वत की डील

एक बिजनेसमैन टोनी (बदला हुआ नाम) ने अपनी पत्नी की जमीन पर किसी और के कब्जा करने के बाद न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। यह केस जज एजाजुद्दीन सलाउद्दीन काजी की बेंच के सामने आया। सुनवाई के बीच में एक छोटा सा ब्रेक लिया गया। इस दौरान, याचिकाकर्ता टोनी टॉयलेट गए। उसी समय, जज काजी का क्लर्क भी उनके पीछे-पीछे गया। जब दोनों वहां पेशाब कर रहे थे, तभी क्लर्क चंद्रकांत वासुदेव ने टोनी से सामान्य तरीके से कहा, 'अगर आप जज साहब का थोड़ा ध्यान रखेंगे, तो फैसला आपके पक्ष में आएगा।' तब टोनी ने पूछा कि इसका क्या मतलब है। क्लर्क ने तुरंत 25 लाख रुपये जवाब दिया। टोनी ने इससे इनकार कर दिया। उस दिन इस मामले की सुनवाई टल गई।

शिकायतकर्ता को बार-बार फोन, 25 लाख से 15 लाख पर सौदेबाजी

दो दिन बाद टोनी को फिर से फोन आया। दूसरी तरफ से कहा गया, 'सोच लो, बाद में यह मत रोना कि फैसला मेरे पक्ष में नहीं आया।' टोनी ने फोन काट दिया। क्लर्क इतने पर भी नहीं रुका और उसने फिर से फोन किया। बातचीत करते-करते उसने 15 लाख में सौदा तय करने की कोशिश की। उनकी इस रिश्वतखोरी से तंग आकर टोनी सीधे एसीबी के पास पहुंच गए। उन्होंने टोनी से कहा कि वे उस क्लर्क को फोन करके इस डील के लिए हां कह दें। इसके मुताबिक, टोनी ने क्लर्क को फोन करके डील के लिए हामी भर दी। फिर क्लर्क ने पैसे लेने के लिए एक जगह तय की। उसके बताए हुए पते पर टोनी गए, और साथ में एसीबी अधिकारी भी उनका पीछा कर रहे थे। उन्होंने इस क्लर्क को रंगे हाथों पकड़ लिया।

रंगे हाथों एसीबी के जाल में फंसा क्लर्क

जैसे ही क्लर्क चंद्रकांत वासुदेव को पता चला कि वह एसीबी के जाल में फंस गया है, उसने कहा, 'मैं तो बस वही कर रहा हूं जो जज साहब ने कहा था।' एसीबी अधिकारियों ने तुरंत क्लर्क से जज को फोन करने के लिए कहा। उसने जज को फोन करके बताया कि पैसे मिल गए हैं। इस पर जज ने कहा, 'ठीक है, यह पैसे कल मुझे दे देना।' लेकिन अब एसीबी अधिकारियों ने क्लर्क को सलाखों के पीछे भेज दिया है और जज के लिए जाल बिछा दिया है।

क्लर्क की गिरफ्तारी के बाद जज के मैसेज ही अब मुख्य सबूत

इधर, अपनी गिरफ्तारी से अनजान जज लगातार क्लर्क को फोन करके पैसों के बारे में पूछ रहे थे। जज को शक था कि कहीं यह क्लर्क पैसे लेकर भाग तो नहीं गया। एसीबी ने हर मैसेज को पढ़ा है, और यही अब अदालत के लिए मुख्य सबूत है। इसके बाद एसीबी की टीम ने जज के घर पर छापा मारा। लेकिन घर पर ताला लगा था और जज गायब थे।

यह सिर्फ मुंबई की एक अदालत की कहानी नहीं है, हर निचली अदालत के जज के पास ऐसा एक क्लर्क होता है। उनका काम ठीक यही होता है - जज की तरफ से रिश्वत मांगना और इकट्ठा करना। अगर वे पकड़े जाते हैं, तो वे कभी भी जज का नाम नहीं लेते क्योंकि जब मामला ठंडा हो जाता है, तो जज आमतौर पर अपने प्रभाव से उन्हें बाहर निकलवा लेते हैं, ऐसा इस घटना के संबंध में ट्विटर पर @theskindoctor13 ने पोस्ट किया है।

आमतौर पर, जजों को इस तरह पैसे के लालच में नहीं पड़ना चाहिए और निष्पक्ष रूप से फैसला सुनाना चाहिए। इसी वजह से सरकार उन्हें ऐसी सुविधाएं देती है जो किसी और को नहीं मिलतीं। सरकारी घर, हर काम के लिए नौकर-चाकर, और अच्छी-खासी सैलरी। इतना सब होने के बावजूद, यहां जज ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, तो आम आदमी की मुश्किलें कौन सुनेगा?

जज की शुरुआती सैलरी कितनी होती है?

निचली अदालत के जज की शुरुआती सैलरी ही महीने में लगभग 1,44,840 से 1,94,660 रुपये तक होती है। इसी तरह, जिला जज की सैलरी एक निश्चित सेवा अवधि यानी 5 साल के बाद लगभग 1,63,030 से 2,19,090 रुपये तक बढ़ जाती है। इसके बावजूद, 'दीये तले अंधेरा' वाली कहावत की तरह, यहां न्याय देने वाले जज ही अन्याय की राह पर चल पड़े हैं, जिससे यह पूछने का मन करता है कि न्याय कहां है?

 

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