
Indian Army supports child education: पंजाब के फिरोजपुर जिले के छोटे से गांव तारा वाली में रहने वाला 10 वर्षीय स्वर्ण सिंह देशभक्ति की मिसाल बन गया। जब मई 2025 में भारत-पाक सीमा पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तनाव चरम पर था, तब यह नन्हा बालक रोज़ाना भारतीय सैनिकों को लस्सी, दूध, पानी, बर्फ और चाय देकर उनका हौसला बढ़ा रहा था। चिलचिलाती गर्मी में वह बिना किसी डर के अपने खेत में तैनात जवानों की सेवा कर रहा था।
किसान का बेटा, सैनिकों का सच्चा साथी स्वर्ण सिंह, पंजाब के फिरोजपुर जिले के तारा वाली गांव का रहने वाला एक 10 वर्षीय बालक है। उसके पिता सोना सिंह एक साधारण किसान हैं और माँ संतोष रानी गृहिणी हैं। स्वर्ण, तीन भाई-बहनों में सबसे छोटा है और अभी चौथी कक्षा का छात्र है। उसका स्वभाव बेहद शांत, मेहनती और अनुशासित है। मई 2025 में जब भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव के चलते ऑपरेशन सिंदूर चल रहा था, तब उसके गांव के खेतों में सेना ने अस्थायी तैनाती की थी। यहीं से शुरू हुई स्वर्ण की देशभक्ति की कहानी, जब उसने अपने घर से रोज़ाना सैनिकों को लस्सी, दूध, बर्फ और चाय पहुंचाना शुरू किया। उसके मासूम चेहरे में छिपी सच्ची भावना और निडर सेवा भाव ने सेना के अफसरों को इतना प्रभावित किया कि वे खुद कहने लगे- "स्वर्ण हमारे जैसे ही एक सच्चा सिपाही है, बस उसकी यूनिफॉर्म थोड़ी अलग है।"
स्वर्ण के इस अद्वितीय योगदान को भारतीय सेना ने गंभीरता से लिया और उसे ‘सबसे युवा नागरिक योद्धा’ का सम्मान देकर सलामी दी। 25 मई को 7वीं इन्फैंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग, मेजर जनरल रणजीत सिंह मनराल ने एक समारोह में उसे स्मृति चिन्ह, स्पेशल लंच और उसकी पसंदीदा मिठाई ‘आइसक्रीम’ भेंट की।
सेना की गोल्डन एरो डिवीजन ने स्वर्ण सिंह की पूरी शिक्षा– प्रवेश से लेकर किताबें, फीस, यूनिफॉर्म और बाकी आवश्यकताएं– खुद वहन करने का निर्णय लिया है। यह कदम देश के भविष्य को संवारने के लिए सेना की सामाजिक ज़िम्मेदारी का प्रतीक बन गया है।
स्वर्ण सिंह ने गर्व से कहा, "मुझे डर नहीं लगा। फौजी अंकल मुझे बहुत प्यार करते थे। मैं भी बड़ा होकर उनकी तरह देश की सेवा करना चाहता हूं।" उसके माता-पिता सोना सिंह और संतोष रानी की आंखें बेटे के जज़्बे से नम हो गईं। सैनिकों ने भी स्वर्ण को बिस्किट, चॉकलेट और भोजन देकर अपना स्नेह जताया।
भारतीय सेना ने कहा, “स्वर्ण की कहानी हमें यह सिखाती है कि देश की रक्षा सिर्फ हथियारों से नहीं, दिल से भी की जाती है। यह पहल इस बात का प्रमाण है कि भारतीय सेना सिर्फ सरहद नहीं, भविष्य भी संवारती है।”
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