
Loan Trap Horror in UP: उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के टंढेरा गांव में कर्ज के जाल में फंसे एक गरीब परिवार की दर्दनाक सामूहिक आत्महत्या की घटना सामने आई है। बेटी की शादी के लिए लिया गया सवा लाख का कर्ज जब ब्याज समेत छह लाख रुपये में बदल गया, तो परिवार ने जीवन से हार मान ली। पत्नी और दो बेटियों की मौत हो गई, जबकि पिता गंभीर हालत में अस्पताल में जिंदगी से जूझ रहा है। यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन हज़ारों गरीबों की सच्चाई है जो साहूकारों और फाइनेंस कंपनियों की शोषणकारी व्यवस्था में फंसे हैं।
चार साल पहले पुखराज नामक मजदूर ने अपनी बेटी की शादी के लिए पत्नी और बेटे के साथ मिलकर सवा लाख रुपये का कर्ज साहूकारों व फाइनेंस कंपनियों से लिया था। वह कर्ज धीरे-धीरे ब्याज के जाल में फंसता चला गया और आज बढ़कर करीब छह लाख रुपये हो गया था।
ब्याज की रकम इतनी बढ़ चुकी थी कि पुखराज जैसे गरीब भट्ठा मजदूर के लिए उसे चुकाना नामुमकिन हो गया। महीने की 25 तारीख को अगली किस्त देनी थी, लेकिन जब पैसों का इंतजाम नहीं हुआ, तो परिवार ने आत्मघात जैसा खौफनाक कदम उठाया।
गुरुवार सुबह करीब 8 बजे पुखराज, उसकी पत्नी रमेशिया (50), बेटी अनीता उर्फ नीतू (21) और शीतू (18) ने जहर खा लिया। जहर का असर होते ही सभी झोपड़ी से बाहर दौड़े और बेहोश होकर गिर पड़े। गांव के प्रधान रईस अहमद ने तुरंत पुलिस को सूचना दी। चारों को पहले नूरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और फिर बिजनौर जिला अस्पताल ले जाया गया। जहां रमेशिया और अनीता की मौत हो गई। शीतू को मेरठ रेफर किया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया। पुखराज की हालत अब भी बेहद नाजुक बनी हुई है।
पुलिस जांच में यह भी सामने आया कि कर्ज वसूली का दबाव और किस्त चुकाने में असमर्थता की वजह से पुखराज का अपने बेटे सचिन से भी अक्सर झगड़ा होता था। परिवार आर्थिक और मानसिक तनाव से टूट चुका था।
बिजनौर की जिलाधिकारी जसजीत कौर और एसपी अभिषेक झा ने इस आत्महत्या की गंभीरता को देखते हुए मामले की विस्तृत जांच के आदेश दे दिए हैं। एसपी झा ने कहा, "कर्ज देने वालों की पहचान की जा रही है। यह देखा जा रहा है कि कहीं वसूली के नाम पर परिवार को प्रताड़ित तो नहीं किया गया।" डीएम ने भी कहा, "कर्ज देने वाले कौन थे, किन शर्तों पर कर्ज दिया गया और किन परिस्थितियों में परिवार ने इतना बड़ा कदम उठाया — इन सभी बिंदुओं पर जांच की जाएगी।"
यह घटना सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि साहूकारी शोषण और प्रशासनिक व्यवस्था की चूक का दर्दनाक उदाहरण है। पुखराज और उसके परिवार की यह त्रासदी बताती है कि कर्ज केवल आर्थिक बोझ नहीं होता, यह एक मानसिक जहर है जो परिवारों को अंदर तक तोड़ देता है। क्या अगला पुखराज बच पाएगा? या फिर ब्याज की आग में हर साल जलती रहेंगी गरीबों की ज़िंदगियां?
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