
Supreme Court QR Code News: सावन की कांवड़ यात्रा जहां शिवभक्तों की आस्था का प्रतीक है, वहीं इस बार यात्रा मार्ग पर दुकानों और ढाबों में लगे QR कोड नई बहस की वजह बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने इस बहस को और तीखा कर दिया है। क्या यह सुरक्षा के लिए जरूरी कदम है या निजता पर हमला?
हर साल कांवड़ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के रास्तों से गुजरते हैं। इस भीड़ में खाद्य सुरक्षा और दुकान की प्रमाणिकतासुनिश्चित करने के लिए सरकार ने आदेश दिया कि यात्रा मार्ग पर सभी दुकानों और ढाबों में QR कोड लगाए जाएं। इन कोड्स को स्कैन करने पर दुकानदार का नाम, लाइसेंस, धर्म और अन्य विवरण सामने आते हैं।
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उत्तर प्रदेश सरकार का तर्क है कि यह फैसला तीर्थयात्रियों की सुविधा और स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिया गया है। इसके ज़रिए वे जान सकेंगे कि कौन सी दुकान वैध है और स्वच्छता मानकों पर खरी उतरती है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद, सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल, सांसद महुआ मोइत्रा और एक नागरिक अधिकार संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की। उनका आरोप है कि QR कोड के जरिए धर्म पूछना या उजागर करना संविधान के खिलाफ है और इससे सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है।
मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि फिलहाल वह अन्य विवादित पहलुओं पर विचार नहीं करेगा क्योंकि यात्रा अब समाप्ति के करीब है। कोर्ट ने सिर्फ इतना कहा कि सभी ढाबा और होटल मालिक अपने लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र वैधानिक रूप से प्रदर्शित करें।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि QR कोड के ज़रिए धर्म जैसी संवेदनशील जानकारी उजागर करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। वहीं सरकार का कहना है कि इसका मकसद स्वच्छता, वैधता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है, न कि किसी विशेष समुदाय को टारगेट करना।
2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे ही आदेश पर रोक लगाई थी जिसमें दुकानदारों से अपनी और अपने कर्मचारियों की पहचान सार्वजनिक करने को कहा गया था। तब कोर्ट ने साफ किया था कि केवल यह बताना जरूरी है कि क्या बेचा जा रहा है, न कि कौन बेच रहा है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अब QR कोड के ज़रिए पुरानी ही नीति को तकनीकी रूप से लागू किया जा रहा है।
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