
दादरी की उस काली रात को देश आज भी भूल नहीं पाया है, जब भीड़ के शक ने एक बेगुनाह की जान ले ली थी। दस साल बाद भी अखलाक हत्याकांड का सच और न्याय की लड़ाई खत्म नहीं हुई है। अब इस बहुचर्चित मामले में अदालत का ताजा फैसला एक बार फिर पूरे प्रकरण को चर्चा के केंद्र में ले आया है।
नोएडा के चर्चित अखलाक मॉब लिंचिंग मामले में यूपी सरकार को बड़ा झटका लगा है। नोएडा की सूरजपुर कोर्ट ने अखलाक हत्याकांड में आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे को वापस लेने संबंधी राज्य सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि सरकार की याचिका आधारहीन और महत्वहीन है, इसलिए आरोपियों के खिलाफ मुकदमा आगे भी जारी रहेगा। मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में कानूनी प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता और आरोपियों पर ट्रायल जारी रहना चाहिए।
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यह मामला 28 सितंबर 2015 का है, जब गौतमबुद्ध नगर जिले के दादरी स्थित बिसाहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। आरोप था कि अखलाक के घर के फ्रिज में गोमांस रखा गया है। इस हमले में अखलाक की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि उनका बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हो गया था। इस घटना ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने सीआरपीसी की धारा 321 के तहत ट्रायल कोर्ट में सभी 19 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की याचिका दायर की थी। सरकार का तर्क था कि इससे सामाजिक सद्भाव बहाल होगा। हालांकि, पीड़ित परिवार ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया और इसे न्याय के साथ समझौता बताया।
मोहम्मद अखलाक की पत्नी इकरामन ने यूपी सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने अपनी याचिका में यूपी सरकार समेत कुल 21 लोगों को प्रतिवादी बनाया है, जिनमें सभी आरोपी भी शामिल हैं। इकरामन का कहना है कि हत्या जैसे गंभीर अपराध में मुकदमा वापस लेना कानून का दुरुपयोग है और इससे पीड़ित परिवार के न्याय के अधिकार का हनन होता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 5 जनवरी 2026 तय की है। फिलहाल, इस केस में शामिल 18 आरोपी जमानत पर बाहर हैं, जबकि तीन आरोपी नाबालिग बताए गए हैं। यूपी सरकार की याचिका खारिज होने और हाईकोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद अखलाक हत्याकांड एक बार फिर सुर्खियों में है।
करीब एक दशक बीत जाने के बावजूद अखलाक का परिवार न्याय की उम्मीद में अदालतों के चक्कर काट रहा है। सूरजपुर कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर उम्मीद जगी है कि इस संवेदनशील मामले में कानून अपना रास्ता तय करेगा और पीड़ित परिवार को इंसाफ मिल सकेगा।
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