
प्रयागराज में इस बार महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी 2025 से होने जा रहा है, और यह मेला 26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ के दौरान लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान और धार्मिक अनुष्ठानों का हिस्सा बनते हैं, लेकिन इन सभी अनुष्ठानों में एक नाम हमेशा सुर्खियों में रहता है - निरंजनी अखाड़ा। इस अखाड़े की पहचान और विशेषताएं अन्य अखाड़ों से पूरी तरह अलग हैं। तो चलिए, जानते हैं कि निरंजनी अखाड़ा क्यों है बाकी सभी से विशेष और इसके महत्व के बारे में।
निरंजनी अखाड़ा का संबंध भगवान कार्तिकेय से है और यह अखाड़ा उन विशेष अखाड़ों में से एक है, जो धर्म, भक्ति और साधना के लिए प्रसिद्ध है। इसके मठ और आश्रम देशभर में फैले हुए हैं, जिनमें प्रमुख स्थानों में प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, उज्जैन, मिर्जापुर, माउंटआबू, जयपुर, वाराणसी, नोएडा और वड़ोदरा शामिल हैं। इन स्थानों पर निरंजनी अखाड़ा के संतों का प्रभाव और धार्मिक गतिविधियां अत्यधिक महत्व रखती हैं।
निरंजनी अखाड़े के पास 33 महामंडलेश्वर और 10,000 से भी अधिक नागा संन्यासी हैं। यह संख्या अन्य अखाड़ों के मुकाबले काफी बड़ी है और इस अखाड़े की शक्ति और प्रभाव को दर्शाती है। इन महामंडलेश्वर और नागा संन्यासियों की भूमिका महाकुंभ के दौरान बहुत महत्वपूर्ण होती है, खासकर जब वे पवित्र स्नान के समय एक साथ जुटते हैं। यह अखाड़ा अपनी मजबूत स्थिति और भव्यता के लिए जाना जाता है।
कहा जाता है कि निरंजनी अखाड़ा के पास करोड़ों की संपत्ति है, जिसका उपयोग वह अपने मठ, मंदिरों और अन्य धार्मिक कार्यों के लिए करता है। इन संपत्तियों के माध्यम से अखाड़ा महाकुंभ और अन्य धार्मिक आयोजनों की व्यवस्था करता है, जिससे उसकी महत्ता और प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसकी भव्यता और संसाधन इसकी स्थिति को और भी मजबूत बनाते हैं, जिससे अन्य अखाड़ों से यह पूरी तरह से अलग नजर आता है।
निरंजनी अखाड़ा की ऐतिहासिक और धार्मिक स्थिति को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं, और यह अखाड़ा समय-समय पर अपने अद्वितीय आयोजनों और पर्वों के लिए पहचाना जाता है। महाकुंभ के दौरान इसका मुख्य आकर्षण रहता है, जब इसके साधु-संत और नागा संन्यासी विशेष प्रकार की साधना और तपस्या में लीन रहते हैं। इसके अलावा, निरंजनी अखाड़ा का बड़ा योगदान हर साल महाकुंभ के आयोजनों में होता है।
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