महाकुंभ 2025: क्या है 'अमृत स्नान'? जानें इसका धार्मिक महत्व

Published : Jan 14, 2025, 10:08 AM ISTUpdated : Jan 14, 2025, 10:15 AM IST
MahaKumbh 2025

सार

प्रयागराज महाकुंभ 2025 में करोड़ों श्रद्धालु अमृत स्नान कर रहे हैं। यह स्नान मोक्ष का द्वार खोलता है और पापों से मुक्ति दिलाता है। जानिए इस पवित्र अनुष्ठान का महत्व।

प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में लगे महाकुंभ मेला 2025 का आज दूसरा दिन है। देश-दुनिया से श्रद्धालु यहां पहुंच रहे हैं। करोड़ों लोग मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम पर स्नान करने पहुंचे हैं।

महाकुंभ अपने आप में खास है। हर 144 साल में एक बार इसका आयोजन होता है। इसके चलते इंसान के पास अपने जीवन में सिर्फ एक बार इसमें शामिल होने का अवसर होता है। मंगलवार को किए जा रहे स्नान को ‘अमृत स्नान’ कहा जा रहा है।

क्या है 'अमृत स्नान'?

'अमृत स्नान' पवित्र अनुष्ठान है। इसमें भक्त कुंभ मेले के दौरान पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं। यह क्रिया हिंदू पौराणिक कथाओं में निहित है। यह शुद्धिकरण और अमरता की खोज का प्रतीक है। माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से इंसान के पास धुल जाते हैं। शरीर और आत्मा शुद्ध हो जाती है। वहीं, महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान को मोक्ष देने वाला माना जाता है। कहा जाता है कि अमृत स्नान के दौरान स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और पुण्य जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है।

महाकुंभ 2025 में 'अमृत स्नान' का क्या है महत्व?

2025 के महाकुंभ मेले में 40 करोड़ से ज्यादा लोगों के आने की उम्मीद है। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समारोह है। इसके 'अमृत स्नान' का खास धार्मिक महत्व है। यह मकर संक्रांति (14 जनवरी), मौनी अमावस्या (29 जनवरी) और बसंत पंचमी (3 फरवरी) को होगा। इन तिथियों को आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली माना जाता है। इस दौरान 'अमृत स्नान' करने से अनुष्ठान के लाभों में वृद्धि होती है।

अमृत ​​स्नान में 13 अखाड़े शामिल होते हैं। प्रत्येक अखाड़े के स्नान करने का समय तय होता है। पुलिस के जवान सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं। अखाड़े के आने-जाने का रास्ता साफ रखा जाता है।

'शाही स्नान' की जगह 'अमृत स्नान' शब्द का हो रहा इस्तेमाल

'अमृत स्नान' शब्द का इस्तेमाल 'शाही स्नान' शब्द की जगह हो रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राचीन परंपराओं का सम्मान करने के लिए पहले इस्तेमाल किए जाने वाले 'शाही स्नान' की जगह 'अमृत स्नान' शब्द को फिर से लागू किया है। इसका उद्देश्य मूल नामकरण की पवित्रता को पुनर्जीवित करना है। यह सनातन संस्कृति की जड़ों की ओर वापसी को दर्शाता है।

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