सनातन धर्म आस्था नहीं, जीवन की कला’- शंकराचार्य निश्चलानंद EXCLUSIVE INTERVIEW

Published : Feb 02, 2025, 12:04 PM ISTUpdated : Feb 02, 2025, 02:07 PM IST
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सार

महाकुंभ में शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एशियानेट न्यूज को दिए इंटरव्यू में धर्म के राजनीतिकरण, धर्मनिरपेक्षता और महिला सशक्तिकरण जैसे मुद्दों पर खुलकर बात की। धर्म का असली मकसद क्या है, जानिए उनके विचार।

सूर्य प्रकाश त्रिपाठी की रिपोर्ट (ASIANET HINDI EXCLUSIVE ) | संगम की रेती पर, जहां करोड़ों श्रद्धालु महाकुंभ के अवसर पर आस्था की डुबकी लगा रहे हैं, वहीं एशियानेट न्यूज के संवाददाता ने पुरी पीठाधीश्वर और जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से एक खास मुलाकात की। इस इंटरव्यू में स्वामी जी ने धर्म का राजनीतिकरण, धर्मनिरपेक्षता, और धार्मिक नेताओं की राजनीति में भूमिका पर गहरी और स्पष्ट बात की। उन्होंने यह भी बताया कि धर्म का मूल उद्देश्य सिर्फ आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखने का मार्गदर्शन देता है। आइए जानते हैं कि स्वामी जी ने इन मुद्दों पर क्या कहा

धर्म का राजनीतिकरण और राजनीतिज्ञों का धर्माचार्यों पर दबाव

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने धर्म का राजनीतिकरण करने की कोशिशों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि धर्म का असली उद्देश्य राजनीति से ऊपर होता है। उन्होंने राजनीतिज्ञों के प्रयासों पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "धर्म का राजनीतिकरण समाज की भलाई के लिए नहीं बल्कि सत्ता के स्वार्थ के लिए किया जा रहा है।" उनका मानना है कि धार्मिक नेताओं को राजनीति से दूर रहकर सिर्फ आध्यात्मिक मार्गदर्शन देना चाहिए, ताकि समाज को सही दिशा मिल सके।

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धर्म और धर्मनिरपेक्षता में अंतर

जब स्वामी जी से धर्मनिरपेक्षता के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने इसे एक भ्रमात्मक अवधारणा बताया। उनका कहना था, "धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा विचार है, जो समाज के वास्तविक तत्वों को नजरअंदाज करता है। जैसे शरीर में अंगों की ऊंच-नीच होती है, वैसे ही समाज में भी विभाजन है। यह विभाजन प्राकृतिक है और अगर इसे मिटा दिया जाए तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा।"

महिलाओं के सशक्तिकरण में धर्म की भूमिका

महिलाओं के सशक्तिकरण के विषय पर स्वामी जी ने भारतीय संस्कृति की प्रशंसा की, जिसमें नारी को हमेशा सम्मान और पूजा गया है। उन्होंने कहा, "भारत की संस्कृति में महिलाओं को देवी के रूप में पूजा गया है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और भगवती दुर्गा इसके उदाहरण हैं। धर्म और संस्कृति महिलाओं की शक्ति, सम्मान और सुरक्षा की रक्षा करते हैं।"

धर्मांतरण और समाज पर इसका प्रभाव

धर्मांतरण को लेकर स्वामी जी का कहना था, "धर्मांतरण का अर्थ है अपने मूल धर्म से स्खलन करना। यह न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी गलत है। धर्म परिवर्तन के कारण व्यक्ति अपनी जड़ों से कट जाता है, और इस कारण वह अपनी असली पहचान खो बैठता है।"

धर्म की पर्यावरण संरक्षण में भूमिका

स्वामी जी ने पर्यावरण संरक्षण को धर्म का ही हिस्सा बताया और कहा, "धर्म हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देता है। पंचमहाभूतों की शुद्धता बनाए रखना ही धर्म का एक अहम हिस्सा है।"

कुंभ मेले में भगदड़ और प्रशासन की भूमिका

कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की मृत्यु पर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने प्रशासन की व्यवस्था पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, "श्रद्धालुओं की आस्था बहुत गहरी है और वे जीवन-मरण की चिंता किए बिना कुंभ में आते हैं, लेकिन प्रशासन को चाहिए कि वे बेहतर भीड़ नियंत्रण व्यवस्था करें ताकि ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।"

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने इस बातचीत के माध्यम से कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला और यह स्पष्ट किया कि धर्म का उद्देश्य केवल आस्था और पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज के हर पहलू में संतुलन बनाए रखने का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

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