
वाराणसी: जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए। पहले तीर्थंकर के रूप में ऋषभदेव (आदिनाथ) और 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी जाने जाते है। सभी तीर्थंकरों ने जैन धर्म के सिद्धांतों को पालन करते हुए भारत ही नहीं विदेशों में इसका प्रचार प्रसार किया। जैन धर्म का विकास को लेकर एक तीर्थंकर को श्रेय नहीं दिया जा सकता है। सभी ने अपनी अपनी भूमिका निभाई है। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में चार की जन्म स्थली काशी है। आज 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ भगवान का जन्म जयंती है। तो आइए जानते हैं उनके बारे में…
वाराणसी के भेलूपुर में भगवान पार्श्वनाथ का जन्म लगभग 3000 वर्ष पूर्व लगभग 872 ईसा पूर्व हुआ था। कल्पसूत्र के अनुसार, वे भगवान महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व, यानी 777 ई. पूर्व अवतरित हुए थे। भगवान पार्श्वनाथ को एक ऐतिहासिक व्यक्ति माना जाता है, जिन्होंने भगवान महावीर से पहले ही श्रमण परंपरा को आम जनता तक पहुंचाया और उसे एक विशिष्ट पहचान दी।
भगवान पार्श्वनाथ के पिता काशी के राजा अश्वसेन थे और माता का नाम वामा देवी था। इस शाही पृष्ठभूमि के कारण, उनका प्रारंभिक जीवन एक राजकुमार के रूप में बीता। तीस वर्ष की आयु में, पार्श्वनाथजी ने गृहस्थ जीवन त्याग कर संन्यास ले लिया। उन्होंने पौष माह की कृष्ण एकादशी को दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने 83 दिन की कठोर तपस्या के बाद, 84वें दिन, उन्हें चैत्र कृष्ण चतुर्थी को सम्मेद पर्वत पर 'घातकी वृक्ष' के नीचे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में पारसनाथ पहाड़ (सम्मेद शिखर)पर निर्माण प्राप्त हुआ।
भगवान पार्श्वनाथ ने कैवल्य ज्ञान के बाद, चातुर्याम धर्म की शिक्षा दी, जिसमें चार प्रमुख व्रत शामिल थे।सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना), और अपरिग्रह शामिल है। पार्श्वनाथ ने ज्ञान प्राप्ति के बाद, उन्होंने सत्तर वर्षों तक अपने विचारों का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने चार गणों या संघों की स्थापना की। उनके गणधरों की संख्या 10 थी, जिनमें आर्यदत्त स्वामी उनके प्रथम गणधर थे।
भगवान पार्श्वनाथ जन्माष्टमी के कमेटी के महामंत्री राकेश जैन ने बताया कि सभी धर्म में अलग-अलग पंथ है। इसी तरह जैन धर्म में चार पंथ है। सबसे पुराना पंथ दिगंबर के पंत के लोग निर्वस्त्र रहते है, जबकि श्वेताम्बर समुदाय के लोग श्वेत वस्त्र धारण करते हैं। राकेश जैन ने कहा कि दिगंबर पंथ के लोगों का मानना है कि दिगंबर अवस्था में शिशु का जन्म होता है। हमारे महाराज लोग किसी भी कसाई से मुक्त हो चुके हैं इसीलिए वह दिगंबर है। वह जैन समाज का प्रचार प्रचार करते हैं। इसीलिए वह सारे आडंबर से दूर रहते हैं और वस्त्र धारण नहीं करते है।
(खबर इनपुट - सुरेन्द्र गुप्ता, वाराणसी)
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