
काशी तमिल संगमम 4.0 वाराणसी में 2 से 15 दिसंबर तक मनाया जा रहा है। तमिल भाषा को संस्कृत के बाद सबसे पुरानी भाषा मानी जाती है। तमिल भाषा का इतना प्राचीन और व्यापक इतिहास को सिलसिलेवार समझेगे। तमिल भाषा के उत्थान में काशी की क्या भूमिका है आइए इसे जानते हैं।
स्कंद पुराण में वर्णन मिलता है कि सप्त ऋषियों में एक ऋषि महर्षि अगस्त्य वाराणसी के गोदौलिया के पास अगस्त्य कुंड क्षेत्र में अगस्त्येश्वर महादेव का मंदिर है। यह वही स्थान है जहां ऋषि अगस्त्य ने घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न करने का काम किया था। भगवान शिव प्रश्न होकर दर्शन दिया था और वहीं स्वयंभू शिवलिंग के नाम पर स्थापित हो गए। जिसे अगस्त्येश्वर महादेव के नाम से जाना गया।
महर्षि अगस्त्य केवल एक महान ऋषि ही नहीं, बल्कि अद्भुत चमत्कारी शक्तियों के स्वामी भी थे। पुराणों के अनुसार, एक समय विंध्य पर्वत अहंकार से भर गया और बढ़ते-बढ़ते उसने सूर्य के मार्ग को रोक दिया। सभी देवता और ऋषि इस समस्या को हल करने के लिए अगस्त्य मुनि के पास गए। अगस्त्य मुनि ने अपनी योग शक्ति से विंध्य पर्वत को आदेश दिया कि वह झुक जाए। पर्वत ने उनकी आज्ञा मानी और आज तक वह वैसा ही झुका हुआ है।
अगस्त्य मुनि ने दो भयानक राक्षसों, वातापि और इल्वल का वध किया था। ये राक्षस ब्राह्मणों को धोखे से मार डालते थे। वातापि मांस के रूप में बदलकर ब्राह्मणों को खिलाया जाता था, और जब ब्राह्मण भोजन कर लेते, तो इल्वल उसे फिर से जीवित कर देता, जिससे वह ब्राह्मण के पेट से बाहर आकर उसे मार डालता था। जब अगस्त्य मुनि ने उसे खाया, तो उन्होंने अपने योग बल से उसे पचा लिया और इल्वल को भी अपने तपोबल से मार डाला।
अगस्त्य मुनि ने अनेक स्थानों पर शिवलिंगों की स्थापना की। वे कांचीपुरम, रामेश्वरम, तिरुवनंतपुरम, मदुरै, और तिरुपति जैसे स्थानों में शिव उपासना को लोकप्रिय बनाने के लिए जाने जाते हैं। महर्षि अगस्त्य भारतीय संस्कृति के महानतम ऋषियों में से एक हैं, जिनका योगदान वेदों, पुराणों, आयुर्वेद, योग, खगोलशास्त्र, सिद्ध चिकित्सा और भाषा-विज्ञान में अतुलनीय है। उन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है और दक्षिण भारत में उन्हें विशेष सम्मान प्राप्त है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने तमिल भाषा की उत्पत्ति भगवान शिव से प्राप्त ज्ञान के आधार पर की थी।
एक कथा के अनुसार, महर्षि अगस्त्य को ब्रह्मा जी ने सृजन कार्य में सहायता के लिए बनाया था। वे न केवल दिव्य शक्तियों से संपन्न थे, बल्कि उन्हें ब्रह्मज्ञान और योग का अपार ज्ञान प्राप्त था।
अगस्त ऋषि ने घोर तपस्या करके श्रीयंत्र जैसी यंत्र की रचना का लिए कार्य किया। उनकी पत्नी लोपामुद्रा द्वारा पहला श्रीयंत्र बनाया गया।
मंदिर के महंत ने बताया कि काशी तमिल संगमम 4.0 का आयोजन हो रहा है। काशी और तमिल संस्कृति को जोड़ने के लिए प्रयास किया जा रहा है। लेकिन अभी तक 4 साल तमिल संगम को हो रहे हैं कोई भी प्रतिनिधिमंडल यहां पर अगस्त्य ऋषि के दर्शन करने नहीं पहुंचा है। अगस्त ऋषि को तमिल भाषा का जनक कहा जाता है अगर तमिल के लोगों को यहां पर दर्शन कराया जाए तो उन्हें ज्ञान होगा कि काशी से ही अगस्त्य ऋषि दक्षिण भारत तमिल के प्रचार प्रचार के लिए गए थे।
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