
1 दिसंबर को दूरसंचार विभाग (DoT) ने एक बड़ा आदेश जारी किया कि अगले 90 दिनों के अंदर भारत में बेचे जाने वाले या आयात किए जाने वाले हर स्मार्टफोन में संचार साथी ऐप पहले से इंस्टॉल होना चाहिए। हालांकि इस फैसले को वापस भी ले लिया गया है लेकिन इसका मकसद: तेजी से बढ़ते साइबर क्राइम इकोसिस्टम, खासकर स्कैम कॉल्स, IMEI फ्रॉड और फोन चोरी से निपटना था। इस निर्देश के बाद ऑनलाइन भारी गुस्सा फूट पड़ा- प्राइवेसी में दखल, सरकारी जासूसी का डर भी बताया गया।
हालांकि सरकार ने बुधवार को घोषणा की कि अब मोबाइल निर्माताओं को सभी नए स्मार्टफोन्स में संचार साथी ऐप को पहले से इंस्टॉल करने की जरूरत नहीं होगी, फिर भी एशियानेट इंग्लिश की हीना शर्मा ने भारत जाने-माने साइबर सिक्यूरिटी एक्सपर्ट अमित दुबे से बात की ताकि लोगों के मन में जो डर है और सच्चाई को अलग किया जा सके।
गलतफहमी को दूर करते अमित दुबे ने कहा- नहीं, यह एक्टिवेट नहीं होगा। आपको इसे एक्टिवेट करना होगा। मोबाइल में पहले से इंस्टॉल किए गए ऐप्स आम हैं- सोशल मीडिया, ओटीटी स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म, यूपीआई वॉलेट लेकिन कोई भी यूजर लॉगिन के बिना काम नहीं करता। जब आप एक फोन खरीदते हैं, तो उसमें फेसबुक या कुछ यूपीआई एप्लिकेशन पहले से इंस्टॉल होते हैं। इसी तरह, कुछ फोन ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ भी पहले से लोड होते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनका इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं। आपको अभी भी एक अकाउंट बनाना होगा, लॉग इन करना होगा, इसे कॉन्फ़िगर करना होगा और पेमेंट करना होगा। तभी आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए भले ही ऐप इंस्टॉल हो, यह अपने आप कुछ नहीं करता है। यह बस आपके फोन में पड़ा रहता है। आपको पहले कॉन्फ़िगर और लॉग इन करना होगा। तभी आप संचार साथी का उपयोग कर सकते हैं।
ऐप कैमरा, कॉल लॉग्स या SMS एक्सेस की मांग क्यों करता है? दुबे ने कहा- किसी ऐप को कुछ फंक्शनैलिटी का एक्सेस देने का मतलब यह नहीं है कि ऐप यह डेटा इकट्ठा कर रहा है। यह साफ कहता है कि यह ऐप कुछ भी इकट्ठा नहीं करता है। यह डाउनलोड नहीं होता है। यह कहीं भी स्टोर नहीं होता है। एक्सेस तभी मौजूद होता है जब यूजर रिपोर्ट करना चुनता है।आप यह कैमरा एक्सेस इसलिए देते हैं क्योंकि आप एक क्यूआर कोड स्कैन करना चाहेंगे…अगर आपको अनचाहा कम्युनिकेशन मिल रहा है, वह एक्सेस केवल उस समय के दौरान दिया जाता है जब आप उस कंटेंट की रिपोर्ट कर रहे होते हैं।
दुबे ने कहा- टेक्नोलॉजी पर भरोसा अब चुनिंदा हो गया है और वो भी बिना किसी तर्क के। फेसबुक आपकी राजनीतिक मान्यता, आपकी धार्मिक मान्यता, आपका फाइनेन्सियल डेटा जानता है। वे हर समय आपकी बातें सुन रहे हैं। यूजर्स स्वेच्छा से बायोमेट्रिक्स, खर्च करने की आदतें और लोकेशन निजी ऐप्स के साथ शेयर करते हैं, लेकिन जब कोई सरकारी टूल किसी अच्छे मकसद से आती है तो लोग घबरा जाते हैं।
उन्होंने कहा- “सरकार को आपसे विशेष रूप से कुछ इंस्टॉल करने के लिए कहने की ज़रूरत नहीं है। उन्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। अगर सरकार करना चाहे तो वे बिना कुछ इंस्टॉल किए भी कर सकते हैं। यह सिर्फ आपकी सरकार के साथ नहीं है। यह किसी भी सरकार, किसी भी देश के साथ है। सरकार पावरफुल होती है। सरकार को अपने लोगों को सेफ रखना होता है। वे टेलीकॉम ऑपरेटर या किसी भी सर्विस प्रोवाइडर से भी पूछ सकते हैं। इसलिए यह न सोचें कि वे हर समय आपकी बातें सुन रहे हैं। किसी के पास समय नहीं है, और यह देश 140 करोड़ लोगों का है। आप हर किसी के साथ ऐसा नहीं कर सकते।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 7 मिनट में 1 साइबर क्राइम होता है। दुबे ने कहा- आप जितनी भी जागरूकता फैलाएं, यह भारत जैसे देश में काम नहीं करेगा। हम पिछले 20 सालों से ऐसा कर रहे हैं, लेकिन लोग अभी भी कुछ बेसिक बातों से अनजान हैं। यही कारण है कि अब ऐप पर ज्यादा जोर दिया गया है। कम जागरूकता के बावजूद परिणाम ज्यादा अफेक्टिव दिख रहे हैं। संचार साथी ऐप कोई नया ऐप नहीं है। यह लगभग एक साल से है। पोर्टल लगभग 3 साल से है। पिछले एक साल में मुझे लगता है कि इसके लगभग 10 मिलियन डाउनलोड हो चुके हैं। पिछले एक साल में इस ऐप की वजह से हमने 24 लाख से ज़्यादा फोन बरामद किए हैं और 42 लाख फोन इस ऐप की वजह से ब्लॉक किए गए। 66 लाख डिवाइस को आपराधिक इस्तेमाल से रोका गया।
कई लोगों को डर है कि तकनीक-प्रेमी धोखेबाज IMEI टैम्परिंग टूल का उपयोग करके ऐप को बायपास कर देंगे। दुबे ने बताया- हमें [IMEI स्पूफिंग] केवल 0.001% मामलों में मिलती है, 99 प्रतिशत से ज़्यादा बार अपराधी आपके फोन का वैसे ही इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे वह है। इसीलिए हम उसे ब्लॉक कर पाए। वरना, अगर वे सभी स्पूफ होते, तो हम उसे कैसे ब्लॉक कर पाते?" चोरी हुए IMEI को ब्लॉक करना भारत में आसान है।
दुबे ने सवाल उठाया: अधिकारी इन अपराधियों का पता कैसे लगा सकते हैं और जो खो गया था उसे कैसे वापस पा सकते हैं? उनके अनुसार, जो छोटी-सी प्रगति हुई है, वह भी यह दिखाती है कि प्रयास सही दिशा में किए जा रहे हैं। इन पहलों के पीछे का इरादा मुख्य रूप से क्विक एक्शन है।अगर अपराध पहले ही हो चुका है, तो संचार साथी कुछ नहीं कर सकता। संचार साथी केवल आपकी सक्रिय रूप से मदद करेगा। अगर कोई चीज आपके पास आ रही है, आपको कॉल कर रही है, उस समय आप रिपोर्ट कर सकते हैं और नंबर ब्लॉक हो जाएगा लेकिन अगर आप पहले ही पैसे खो चुके हैं, तो उसके लिए संचार साथी कुछ नहीं कर रहा है।
उन्होंने कहा- साइबर सुरक्षा एक आपसी जिम्मेदारी है। इसे अकेले हासिल नहीं किया जा सकता। जब लोग धोखाधड़ी के प्रयासों को नजरअंदाज करते हैं, तो वे अनजाने में अपराधियों को सक्षम बनाते हैं। अगर मुझे पता है कि यह एक धोखेबाज का नंबर है लेकिन मैंने इसकी रिपोर्ट नहीं की है, तो वास्तव में मैंने उस अपराधी को किसी और को लूटने में सक्षम बनाया है। अगर मैं एक लड़की को अकेले चलते हुए देखता हूं और लोग उसे परेशान कर रहे हैं, और मैं रिपोर्ट नहीं करता तो यह भी मेरी जिम्मेदारी है। इसलिए साइबरस्पेस में समुदाय को हाथ मिलाना चाहिए और मिलकर प्रयास करना चाहिए ताकि हम मिलकर अपराधियों को निशाना बना सकें।
“हम यह साबित नहीं कर सकते कि यह व्यक्ति वही व्यक्ति है। पोस्टमार्टम गतिविधियां आपकी मदद नहीं करेंगी। एकमात्र चीज़ जो आपकी मदद करेगी वह है- रिपोर्ट करो, ब्लॉक करो। रिपोर्ट करो, ब्लॉक करो।”
रोकना क्यों मुश्किल है? क्योंकि अपराधी इनके पीछे छिपते हैं…
साइबर क्राइम अब एक उद्योग बन गया है। यह 100000 करोड़ की इंडस्ट्री है।
यूके जैसे देशों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा- वे सुरक्षित हैं क्योंकि वे ज़्यादा अलर्ट हैं। वे एक ही सर्वर के माध्यम से हर एक गतिविधि को ट्रैक कर रहे हैं। निगरानी तो वहां ज़्यादा हो रही है। हर देश भारत से ज़्यादा साइबर अपराध का सामना कर रहा है। इंसान सबसे कमजोर कड़ी बना हुआ है।
दुबे का मानना है कि भारत वैश्विक साइबर पुलिसिंग का नेतृत्व कर सकता है। अगर हम ऐसा कर पाए तो यह एक क्रांति होगी। दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं कर सका। भारत इसका नेतृत्व करेगा। हम वास्तव में करोड़ों लोगों को अपराधियों के खिलाफ एकजुट कर सकते हैं। यह सिर्फ एक ऐप नहीं है- बल्कि साइबर क्रिमिनल्स के खिलाफ एक संभावित सामूहिक हथियार है।