डिजिटल व्रत रखकर करें खुद को डिटॉक्स, हेल्थ मजबूत रहेगी, दिमाग चलेगा तेज, जानें कब करें शुरुआत

हमारे आसपास की दुनिया स्मार्टफोन ने ले रखी है। हर दिन हम कई-कई घंटे मोबाइल और लैपटॉप जैसे गैजेट्स पर बिता रहे हैं। जिससे मानसिक समस्याएं हो रही हैं और सेहत भी बिगड़ रही है। यही कारण है कि अब डिजिटल फास्टिंग की जरूरत पड़ने लगी है।

Satyam Bhardwaj | Published : Feb 7, 2023 3:49 AM IST

टेक डेस्क : दिनों-दिन स्मार्टफोन हमारी लाइफ के और भी ज्यादा करीब आता जा रहा है। कुछ समय पहले तक लोग थोड़ा-बहुत समय टीवी को दे दिया करते थे लेकिन अब तो स्थिति यह है कि टीवी ऑन कर मोबाइल यूज करते हैं। हर पल स्मार्टफोन (Smartphone) पर बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक आंखें गड़ाए रहते हैं। करीब-करीब हर काम अब स्मार्टफोन से ही हो रहा है। फिर चाहे वो तस्वीरें लेनी हो या फिर बैंकिंग का काम। घूमने भी जा रहे हैं तो मन घूमने में लगाने की बजाया मोबाइल पर ही लगा रहता है। स्मार्टफोन ने जिंदगी में ऐसी जगह बनाई है कि अब डिजिटल फास्टिंग यानी डिजिटल व्रत (Digital Fasting) की जरूरत पड़ने लगी है। आइए जानते हैं क्या है डिजिटल व्रत और यह कैसे आपकी मदद कर सकता है...

डिजिटल फास्टिंग

डिजिटल फास्टिंग का मतलब दिन में किसी वक्त या सप्ताह में किसी एक दिन स्मार्टफोन का एक लिमिट में ही इस्तेमाल करना है। इसमें एक समय निर्धारित किया जाता है और उसी में मोबाइल का यूज होता है। डिजिटल व्रत के दौरान मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप को ही शामिल करते हैं। इसे डिजिटल डिटॉक्स, डोपामाइन फास्टिंग, अनप्लगिंग फ्रॉम टेक्नोलॉजी और डिजिटल सब्बाथ के नाम से भी जानते हैं।

डिजिटल फास्टिंग कितना जरूरी

मोबाइल पर चिपके रहने की लत आजकल हर उम्र के लोगों में देखने को मिलती है। एक आंकड़ों के मुताबिक चार साल पहले 2019 में भारतीय करीब साढे 3 घंटे ही स्क्रीन पर बिताते थे लेकिन 2021 में साल के 6 हजार 550 करोड़ घंटे भारत के लोगों ने मोबाइल स्क्रीन पर गुजारा। यानी कि दो साल में ही इसमें 37 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। स्मार्टफोन पर ज्यादा समय गुजारने में हमारा देश ब्राजील, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया और मैक्सिको के बाद पांचवें नंबर पर आता है। वर्तमान में कम के कम एक इंसान दिन में 6 घंटे फोन स्क्रीन पर गुजारता है।

डिजिटल फास्टिंग कब शुरू करना चाहिए

हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, युवा जिस कदर अपना वक्त स्मार्टफोन को दे रहे हैं वह चिंता की बात है। आज का यूथ दिनभर में आठ-आठ घंटे ऑनलाइन रहता है। इसका सीधा असर उसकी हेल्थ पर पड़ता है। सोशल मीडिया की लत उसका बर्ताव बदल रही है। वह कब चिड़चिड़ा हो जा रहा है, उसे समझ ही नहीं आती। मानसिक समस्याएं भी परेशान करने लगती हैं। ऐसी स्थिति से बचने के लिए डिजिटल फास्टिंग की सलाह दी जाती है।

डिजिटल फास्टिंग के बेनिफिट्स

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