नासा के साइंटिस्ट्स का मानना है कि शनि के चंद्रमा एन्सेलेडस की बर्फीली सतह काफी चिकनी है और वहां का तापमान शून्य से नीचे 300 डिग्री फ़ारेनहाइट से भी ज्यादा है। वैज्ञानिक का मानना है कि इसकी बर्फीली सतह के नीचे भारी मात्रा में पानी हो सकता है।
टेक डेस्क : नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) धरती के बाहर जीवन की खोज में कर रहा है। पृथ्वी से दूर जीवन की मौजूदगी की संभावनाओं की तलाश करने के लिए अब एक सांप जैसा रोबोट बना रहा है। इस रोबोट को इस तरह डिजाइन किया जा रहा है, जिससे यह आसानी से 'एन्सेलेडस' (Enceladus) की सतह तक पहुंच सके। बता दें कि शनि (saturn) के 83 चंद्रमा हैं, जिनमें से एक एन्सेलेडस भी है। इस रोबोट की मदद से नासा एन्सेलेडस की बर्फीली सतह की जांच कर यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि वहां जीवन संभव है या नहीं?
NASA का सांप जैसा रोबोट क्या है
नासा ने इस रोबोट का नाम EELS यानी एक्सोबायोलॉजी एक्सटेंट लाइफ सर्वेयर रखा है। यह शनि ग्रह के 6वें सबसे बड़े चंद्रमा एन्सेलेडस की सतह पर पानी और जीवन के लिए जरूरी चीजों का पता लगाएगा।
नासा का EELS किस तरह काम करेगा
नासा जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के मुताबिक, 'EELS सिस्टम मोबाइल इंस्ट्रूमेंट प्लेटफॉर्म है। इसे खास मकसद से बनाया जा रहा है। जिसकी मदद से वहां के आंतरिक इलाके की संरचनाओं का पता लगाने, वहां रहने की क्षमता की जांच और जीवन की तलाश की जाएगी। इस सांप जैसे रोबोट को इस तरह डिजाइन किया जा रहा है, ताकि यह समुद्री दुनिया, भूलभुलैया जैसे वातावरण और लिक्विड पदार्थों के अनुसार चीजों की खोज कर सके।
क्या शनि के चंद्रमा पर मौजूद है पानी
नासा के साइंटिस्ट्स का मानना है कि शनि के चंद्रमा एन्सेलेडस की बर्फीली सतह काफी चिकनी है और वहां का तापमान शून्य से नीचे 300 डिग्री फ़ारेनहाइट से भी ज्यादा है। वैज्ञानिक का मानना है कि इसकी बर्फीली सतह के नीचे भारी मात्रा में पानी हो सकता है। कैसिनी स्पेसशिप के आंकड़ों के अनुसार, इसकी सतह से प्लम यानी एक तरह का धुआं निकलता है, जो सीधे पानी में जाता है. इसे संभावित तौर से रहने योग्य तरल महासागर जैसा बनाता है।
नासा का EELS प्रोजेक्ट कब लॉन्च होगा
नासा का EELS प्रोजेक्ट कब तक लॉन्च होगा, इसकी कोई आधिकारिक तारीख सामने नहीं आई है। माना जा रहा है कि इस मिशन में अभी काफी समय लग सकता है। अगर इस 16 फीट लंबे रोबोट का सफल प्रक्षेपण होता है तो इससे दूसरे आकाशीय ग्रहों और उनकी संरचनाओं की खोज काफी आसान हो जाएगी। जहां तक पहुंचना और रिसर्च करना अभी काफी कठिन और मुश्किलों भरा है।
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