फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का निधन, उनकी जिंदगी से हर कोई सीख सकता है ये 5 बातें

मिल्खा सिंह ने पहली बार 1958 के टोक्यो खेलों में भाग लिया, जहां उन्होंने 200 मीटर में गोल्ड जीता। उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को हराया था।

Asianet News Hindi | Published : Jun 19, 2021 6:33 AM IST / Updated: Jun 19 2021, 12:05 PM IST

फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर भारत के लीजेंड स्प्रिंटर मिल्खा सिंह का कल देर रात निधन हो गया। वे 91 साल के थे। कोरोना से संक्रमित होने पर उन्हें चंडीगढ़ के हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 15 दिन तक हॉस्पिटल में रहने के बाद कल रात उनकी हालत नाजुक हो गई और उन्होंने जिंदगी का साथ छोड़ दिया। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है कि फ्लाइंग सिख की जिंदगी कैसी थी और उससे क्या-क्या सीख सकते हैं। 

1- अपनी परेशानियों से निकलने के लिए साहस 
गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान में) में जन्म लेने वाले मिल्खा सिंह को बचपन से ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बचपन से ही उनके साथ कुछ ऐसी घटनाएं थी जो डराने वाली थीं। उन्होंने न केवल अपने देश को रातों-रात उजड़ते हुए देखा, बल्कि उसके बाद हुए दंगों में अपने माता-पिता का सिर कलम होते हुए भी देखा। उनके पास अपने गांव से भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। फिर भी मिल्खा सिंह इन परेशानियों में नहीं घिरे। भविष्य के लिए कड़ी मेहनत करते रहे। 

2- आप खुद पर विश्वास नहीं करेंगे तो कोई आप पर विश्वास नहीं करेगा
काफी लंबे समय से मिल्खा सिंह अपनी बहन और साले के साथ दिल्ली में शरणार्थी शिविर में रहे। यहां से वे भारतीय सेना में गए। यहीं पर उन्हें एक एथलीट के रूप में मौका मिला। सभी कैडेट्स के बीच क्रॉस-कंट्री रेस हुई, यहां जीतने वाले को स्टेट लेवल पर भेजा जाएगा। मिल्खा सिंह ने   सभी राउंड क्लियर किए। उन्हें विश्वास था कि वह कर सकते हैं।

3- मेहनत का कोई विकल्प नहीं
मिल्खा सिंह बहुत कम उम्र से ही भारतीय सेना में शामिल होना चाहते थे। हालांकि पहली बार में उन्हें सफलता नहीं मिली। वे तीन बार खारिज किए गए। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। जब उन्हें स्टेट लेवल के लिए चुना गया तो सेना में ट्रेनिंग को भी पूरा करना होता था। लेकिन उन्होंने दोनों जगहों पर मेहनत की। वह अपनी ताकत, स्पीड में सुधार करने की कोशिश करते रहे। आखिरकार, उन्होंने इंटरनेशनल खेल आयोजनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।  

4- मत भूलें कि किसने आप का साथ दिया 
जब मिल्खा सिंह को स्टेट लेवल के लिए चुना गया तो उन्हें एक कोच चुना गया, जिन्होंने उन्हें शुरू से ही सब कुछ सिखाया। उन्हीं से उन्होंने नुकीले जूते पहनकर दौड़ना सीखा। एक कोच होने के अलावा वह उनके चीयरलीडर थे। उनके मार्गदर्शन में ही वह इंटरनेशनल टूर्नामेंटों में भाग ले सके। 400 मीटर विश्व रिकॉर्ड तोड़ने के बाद वह अपने कोच के पास वापस आए और आभार जताने के लिए अपना पदक उन्हें सौंप दिया।

5- सफलता का मतलब पुरस्कार और सम्मान से ज्यादा होता है
मिल्खा सिंह को एक भारतीय एथलीट के रूप में अपने करियर के दौरान अनगिनत पदक से सम्मानित किया गया था। हालांकि, आज उनके पास उनमें से एक भी है। अपने घर को ट्राफियों से सजाने के बजाय उन्होंने उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को देने का फैसला किया। ये दिखाता है कि सफलता का मतलब पुरस्कार और सम्मान से कहीं ज्यादा होता है। 

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