Baisakhi 2022: क्यों मनाते हैं बैसाखी पर्व, क्या है मान्यता और महत्व, जानें सब कुछ

Published : Apr 14, 2022, 07:54 AM IST
Baisakhi 2022: क्यों मनाते हैं बैसाखी पर्व, क्या है मान्यता और महत्व, जानें सब कुछ

सार

Baisakhi 2022: यह सिख धर्म (Sikh Community) का प्रमुख त्योहार है और खुशहाली तथा समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार हर साल अप्रैल महीने में यानी विक्रम संवत के पहले महीने में आता है। इस साल बैसाखी (Baisakhi) का त्योहार 14 अप्रैल, गुरुवार को मनाया जा रहा है। वहीं, हिंदू कैलेंडर (Hindu Calender) के मुताबिक, यह खास दिन सौर नव वर्ष के तौर पर भी प्रचलित है। 

नई दिल्ली।  Baisakhi 2022: यह पर्व किसानों का त्योहार माना जाता है। खेतों से काटकर लाई गई फसल की घर पर पूजा होती है और खुशिया मनाई जाती हैं। पूरे उत्तर भारत खास तौर पर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह धूमधाम से मनाया जाता है। पंजाबी समुदाय के लोग भांगड़ा नृत्य भी करते हैं। बैसाखी पर्व सिख धर्म का प्रमुख त्योहार है। यह खुशहाली और सुख-समृद्धि का प्रतीक है। आज के दिन ग्रहों के देवता सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं यानी प्रवेश करते हैं। इस दिन से पंजाबी समुदाय का नव वर्ष भी प्रारंभ होता है। 

इस बार बैसाखी पर्व 14 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इसी दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। लोग नए वस्त्र धारण करते हैं। सभी प्रियजनों को बधाई और शुभकामनाएं संदेश दिए जाते हैं। घरों में पकवान बनते हैं और मिल-बांटकर खुशियां मनाते हैं। सिख धर्म के लोग बैसाखी को नए साल के रूप में मनाते हैं। इस दिन तक रबी की फसल पक जाती है और कटाई भी लगभग हो चुकी होती है।

क्यों मनाते है बैसाखी  
किसान फसल को घर लाते हैं। उसकी पूजा होती है। इसी खुशी को वे धूमधाम से मनाते हैं। एक मान्यता यह भी है कि 13 अप्रैल 1699 को सिख धर्म के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। तभी से यह दिन बैसाखी पर्व के तौर पर मनाते हैं। इस दिन से पंजाबी नव वर्ष की शुरुआत होती है। 

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गुरुवाणी सुनते हैं, विशेष पूजा होती है 
सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं। इस दिन गुरुद्वारों में सजावट होती है। लोग प्रार्थना करते हैं। पवित्र धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को पवित्र जल और दूध से शुद्ध किया जाता है। उसके बाद पवित्र ग्रंथ को ताज के साथ फिर उस शुद्ध स्थान पर रखते हैं। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। गुरुवाणी सुनी जाती है। प्रसाद के तौर पर खीर, शरबत और हलवा दिया जाता है। शाम को लकड़ियां जलाते हैं और उसके चारों ओर भांगड़ा करते हैं। इस तरह यह पर्व हंसी खुशी संपन्न होता है। 

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