अंध विश्वास की पराकाष्ठा: दुधमुंहे बच्चे को मंदिर की छत पर ले गए और...खौफनाक वीडियो

Published : Nov 08, 2025, 07:11 PM ISTUpdated : Nov 08, 2025, 07:31 PM IST
child faith or superstition throwing baby

सार

मंदिर की छत से बच्चे को फेंकने की घटना ने सवाल उठाए कि आस्था कब अंधविश्वास बन जाती है। मनुष्य का विवेक और वैज्ञानिक सोच ही असली शक्ति है, न कि खतरनाक परंपरा।

Superstition Throwing Baby: भारत में धर्म की जड़ें बहुत गहरी है, लोगों की ईश्वर में आगाध श्रद्धा है। धर्म और संस्कृति किसी भी शख्स की पहचान होती है। इसी से वह अपनी विरासत को आगे बढ़ाता है। लेकिन एक बात का ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है, दरअसल आस्था और अंध विश्वास में बहुत महीन रेखा होती है, जिसे पहचानना बहुत जरुरी होता है। यहां ऐसे ही घटना के बारे में हम आपको बता रहे हैं, जिसे देखकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे।

मंदिर की छत से दुधमुंहे बच्चे को फेंका 

सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इसमें एक मंदिर में अजीबोगरीब और अंधविश्वास की पराकाष्ठा की एक क्लिप सामने आई है। इसमें एक दुधमुंहे बच्चे को शिवलिंग से स्पर्श कराने के बाद छत से नीचे फेंक दिया गया। रैडिट पर शेयर की गई क्लिप में यह दावा किया गया कि यह अनोखी रस्म बच्चे की "इम्यूनिटी बढ़ाने" के लिए की जाती है। अब ये वायरल वीडियो सामने आने के बाद लोग हैरान हैं कि एआई के ज़माने में ऐसी प्रथाएं कैसे जारी हैं।

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एक चूक से जा सकती थी बच्चे की जान 

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, फैमिली के कुछ मेंबर नीचे चादर लेकर खड़े थे। वहीं मंदिर की छत पर कुछ लोगों ने शिवलिंग से बच्चे को स्पर्श कराने के बाद लगभग 20 फीट की ऊंचाई से नवजात को नीचे फेंक दिया। वहीं चादर पकड़े लोगों ने उसे लपक लिया। लेकिन इसमें छोटी सी भूल से बच्चे की जान जा सकती थी। यदि बच्चा चादर के बाहर गिरता तो उसका क्या होता ये सोचकर रुह कांप जाती है। वहीं यदि एक शख्स भी चादर का सिरा छोड़ देता तो बच्चा हादसे का शिकार हो सकता था।

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समाजसेवी संगठनों ने उठाए सवाल 

बाल कल्याण समिति ने इस घटना की निंद करते हुए कहा है कि ऐसे “अंध संस्कार” समाज की विवेकहीनता को उजागर करते हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि किसी भी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता धार्मिक रीति-रिवाजों से नहीं बल्कि पोषण, टीकाकरण और स्वच्छता से बढ़ती है।

 

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