Mother's Day 2022: कौन थीं अन्ना जार्विस, अथक परिश्रम से यह दिन शुरू तो कराया, मगर बंद करने की मुहिम भी चलाई

Mother's Day 2022: मदर्स डे (Mother's Day) हर साल मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। अन्ना जार्विस (Anna jarvis) ने अपनी मां की  इच्छा और सम्मान में यह दिन शुरू कराया था, मगर एक से दो साल बाद ही उनका इस खास दिन से मोहभंग हो गया और वह अपनी अंतिम सांस तक इस दिन का विरोध करते हुए इसे बंद कराने में जुटी रहीं। 

Asianet News Hindi | Published : May 8, 2022 6:38 AM IST

नई दिल्ली। Mother's Day 2022: आज मातृत्व दिन यानी मदर्स डे (Mother's Day) है। अब तक, आपने शायद मदर्स डे से संबंधित गूगल डूडल (Google Doodle) देखा है। व्हाट्सएप पर मैसेज (Whatsapp Messages) मिले होंगे। आपने भी शायद भेजे होंगे। आज के लिए अपनी मां को कौन से गिफ्ट (Gift for Mothers Day) दें, इसकी लंबी लिस्ट भी पढ़ने को मिली होगी। कुछ लोगों को फेसबुक, ट्विटर और  इंस्टाग्राम (Facebook, twitter and Instagram) पर मातृत्व दिवस की शुभकामनाएं भी दी होंगी। मगर काफी हद तक संभव है कि मदर्स डे के साथ इन सभी प्रक्रियाओं में बातचीत में, आपने अन्ना जार्विस का नाम नहीं लिया, देखा या सुना होगा।  

ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि जार्विस ने आज के जिस दिन खास दिन की उन्होंने शुरुआत की थी, बाद में उसी के साथ उनके संबंध जटिल हो गए थे या कहें  बेहद खराब हो गए थे। हालांकि, उन्होंने "मदर्स डे" को आधिकारिक रूप से मान्यता दिलाने के लिए अथक परिश्रम किया था। मगर शुरुआत के कुछ साल बाद ही वह दिन का बाजारीकरण किए जाने से इससे नफरत करने लगीं। इसके बाद तो उन्होंने जो ऊर्जा इसे शुरू करने में लगाई थी, उससे कई ऊर्जा और पैसा इसके खिलाफ प्रचार करने और इसे बंद करने में आखिरी समय तक लगाती रहीं। तो आइए एक नज़र डालते हैं अन्ना जार्विस पर। वह कौन थीं। उन्होंने "मदर्स डे" की  शुरुआत कैसे की और जिस तरह से इसे मनाया जाने लगा, उससे वह बुरी तरह निराश क्यों हुई। 

शुरू से मां को संघर्ष करते देखा, विपरित परिस्थितियों में भी काम करती रहीं 
अन्ना जार्विस का जन्म 1 मई 1864 को हुआ था, जबकि उनकी मौत 24 नवंबर 1948 को हुई। वह एक अमरीकी कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने 1908 में अपनी और बाकी सभी मांओं को सम्मानित करने के लिए इस खास दिन मदर्स डे की स्थापना की। अन्ना वेस्ट वर्जीनिया में पलीं और बढ़ीं। जब वह पैदा हुई थीं, तब वहां गृहयुद्ध जारी था। उन्होंने अपने 13 में से 9 भाई-बहनों को खसरा, टाइफाइड और डिप्थीरिया जैसी बीमारियों से मरते देखा। उनकी मां एन रीव्स जार्विस खुद के अनुभवों से प्रेरित होकर मातृत्व से  जुड़े प्रयासों को देखते हुए इस दिशा में काम करती रहीं। उन्होंने बाल मृत्यु दर रोकने के लिए महिलाओं को स्वच्छता की जानकारी देना और इसके प्रति जागरुक करना तथा गृहयुद्ध के दौरान दोनों पक्षों की मांओं का समूह बनाकर उनके बीच काम किया। इससे दोनों पक्षों के बीच मतभेद दूर करने में काफी हद तक मदद मिली।  

मां की प्रबल इच्छा थी कि ऐसा कोई खास दिन मनाया जाए 
अन्ना अपनी मां से बेहद प्रभावित थीं। उन्होंने एक बार अपनी मां को यह कहते सुना था कि वह उम्मीद और प्रार्थना करती हैं कि किसी को, कभी एक यादगार मातृ दिवस मिलेगा, जो उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में मानवता के लिए प्रदान की जाने वाली अतुलनीय सेवा की याद दिलाएगा, क्योंकि वे इसकी हकदार हैं। 1905 में जब अन्ना की मां की मौत हुई, तब अन्ना अपनी मां की इस प्रबल इच्छा को पूरा करने में जुट गईं। उन्होंने राजनेताओं, व्यापारियों और चर्च के नेताओं को पत्र लिखा और उनसे इस बारे में समर्थन मांगा। उन्होंने आग्रह  किया कि हर साल मई के दूसरे रविवार को मांओं के लिए समर्पित दिन के तौर प्रस्तावित किया जाए। इस दिन एक सफेद कार्नेशन फूल, जो उनकी मां के पसंदीदा फूल थे, इस खास दिन का प्रतीक बने।  

रविवार छुट्टी का दिन होने से अन्ना का काम आसान हुआ 
बहरहाल, रविवार को छुट्टी होने की वजह से अन्ना का यह काम आसान हो गया था। वैसे अन्ना ने मई का दूसरा रविवार एक खास वजह से चुना था। दरअसल, 9 मई को उनकी मां की मौत हुई थी और वह मानती थीं कि मई का दूसरा रविवार इसी के आासपास पड़ेगा। 1908 में उनका प्रयास रंग लाया। तमाम चर्च से इस दिन को मातृ दिवस के तौर पर मनाए जाने का ऐलान कर दिया गया और करीब छह साल बाद अमरीकी राष्ट्रपति बुडरो विल्सन ने भी 8 मई 1914 को इस खास दिन को मनाए जाने के लिए बिल पर हस्ताक्षर कर दिए। इस तरह मदर्ड डे मनाए जाने को लेकर कानून भी पास हो गया। इसके अलावा, अन्ना जार्विस कई प्रमुख राजनेताओं, व्यापारियों और शख्सियतों का समर्थन भी हासिल कर चुकी थीं। 

कार्नेशन फूल बांटे और इसी का बाजारीकरण शुरू हो गया  
इसके बाद शुरुआत हुई उनके इस दिन के मोहभंग की। दरअसल, अन्ना ने  मदर्ड डे पर अपनी  मां के  पसंदीदा कार्नेशन फूल बांटे थे, तो इस प्रतीक की कालाबाजारी होने लगी। महंगे दाम पर बेचे जाने लगे और एक अच्छे अभियान का बाजारीकरण हो गया। इस दिन के नाम पर चॉकलेट, महंगे गिफ्ट और पार्टी की भी शुरुआत हो गई, जिसने अन्ना को दुख पहुंचाया। परेशान अन्ना ने इसका विरोध करना शुरू किया और मदर्ड डे बंद करने का अभियान चलाने लगीं। वह अपने आखिरी दिन तक इसके लिए लड़ती रहीं। कहा जाता है 1944 में उनके पास इससे जुड़े 44 मुकदमों की फाइल थी और ये मामले कोर्ट में लंबित थे। बाद में उनकी 1948 में मौत हो गई और तब तक मामले लंबित थे। 

अन्ना के समर्थन में रिश्तेदारों ने भी मनाना बंद कर दिया यह खास दिन 
उनके रिश्तेदारों ने भी अन्ना का समर्थन किया और इस दिन को मनाना बंद कर दिया। वे अन्ना को बहुत प्यार करते थे और मदर्स डे को बहुत सम्मान के साथ मनाते थे, लेकिन जबकि अन्ना इसका विरोध करती थीं, इसलिए उन्होंने भी इसे मनाना बंद कर दिया, जबकि उनके अंकल और आंटी को यह दिन मनाना बेहद पसंद था। बहरहाल, अन्ना के आखिरी वंश की 1990 में मौत हो गई और अब उनके करीबी रिश्तेदारों में कोई जीवित नहीं बचा है। 

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