दुनियाभर में आज इंटरनेशनल डे ऑफ रिम्मबरेंस ऑफ विक्टिम्स ऑफ स्लेवरी एंड ट्रांसेटलेंटिक स्लेव ट्रेड दिवस (International Day of Remembrance of Victims of Slavery and Transatlantic Slave Trade 2022) मनाया जा रहा है। पहली बार इस खास दिन को मनाने की शुरुआत 2008 में हुई थी। इसका उद्देश्य दुनियाभर से दास प्रथा को खत्म करना है।
नई दिल्ली। इंटरनेशनल डे ऑफ रिम्मबरेंस ऑफ विक्टिम्स ऑफ स्लेवरी एंड ट्रांसेटलेंटिक स्लेव ट्रेड दिवस (International Day of Remembrance of Victims of Slavery and Transatlantic Slave Trade 2022) हर साल 25 मार्च को मनाया जाता है। 2007 में इसका संकल्प पारित हुआ और वर्ष 2008 से यह लगातार मनाया जा रहा है। यह दिन करीब चार सौ वर्ष तक दासतां और गुलामी से जकड़े रहे और क्रूर व्यवहार के भुक्तभोगी करीब डेढ़ करोड़ पुरुषों, महिलाओं तथा बच्चों की याद और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मनाया जाता है। साथ ही, एक नया संकल्प लिया जाता है कि नए सभ्य समाज में अब ऐसी क्रूरताएं और कुप्रथाएं वापस नहीं आने दी जाएंगी।
करीब 400 साल पहले अमानवीय तरीके से बल पूर्वक अफ्रिकी मूल के लोगों बंदी बनाकर दक्षिणी अमरीका में ले जाया गया। ज्यादातर बंदी कैरिबियाई द्वीप समूह से लाए गए थे। अमरीका में आज अफ्रिकी मूल के लोगों की बड़ी आबादी है। वर्ष 1501 से वर्ष 1830 तक एक यूरोपीय के साथ चार अफ्रिकी मूल के लोगों ने अटलांटिक को पार किया।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर याद कर रहे
उस युग में इसके जरिए ऐसी भी कोशिश रही कि अमरीकी जनसंख्या को एक यूरोपीय की तुलना में अफ्रिकी प्रवासी बनाने की कोशिश की गई और इसका परिणाम आज दिखाई पड़ता है, जब अमरीका में अफ्रिकी मूल के लोगों की जनसंख्या काफी अधिक है और यह अमरीका के किसी एक खास हिस्से में नहीं बल्कि, पूरे अमरीका में विस्तारित हैं।
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गुलामी का खात्मा और स्वायत्तता का अधिकार
हालांकि, गुलामी के खात्मे और इसके उन्मूलन के बाद भी आज आधुनिक तौर पर यह कुप्रथा बदस्तूर जारी है। इसके जरिए स्वायत्तता के अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके अलावा, आज जातिवाद और पूर्वाग्रह की बर्बर व्यवस्था कायम है। इस वर्ष की थीम है साहस की कहानियां: गुलामी का विरोध और जातिवाद के खिलाफ एकता यानी स्टोरीज ऑफ करेज: रेजिस्टेंस टू स्लेवरी एंड यूनिटी अगेंस्ट रेसिस्म।
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सामूहिक मानव तस्करी का विस्तार एक से दूसरे देश तक
बहरहाल, गुलामी और दासता पर अक्सर चर्चा होती रही है। यह अभूतपूर्व सामूहिक मानव तस्करी को लेकर घटना थी, जिसका विस्तार एक देश से दूसरे देश तक है। इसमें अपमानजनक तरीके से लेनदेन और मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया। अभी भी छोटे-मोटे स्तर पर गुलामी और दास प्रथा कई जगहों पर चोरी-चुपके जारी है। इससे जुड़े सैंकड़ों खुलासे अब भी होते रहते हैं।