ट्रेंडिंग डेस्क. अंडमान-निकोबार के 21 द्वीपों को अब नया नाम मिल गया है। पीएम मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भारतीय सेना के परमवीरों यानी परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर इनका नाम रखा है। इस आर्टिकल में जानें इन वीर योद्धाओं के बारे में…
भारतीय सेना की राजपूत रेजीमेंट के नायक जदुनाथ सिंह को 1948 में अपने अद्भुत शौर्य के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। जनवरी 1948 में कबाइली आक्रमण के समय जब उनके सभी सिपाही घायल हो गए तो जदुनाथ ने अकेले ही गोलियों की बौछार कर दुश्मनों का सामना किया और उन्हें पीछे हटाते गए। जब तक पैरा राजपूत की अन्य टुकड़ियां मोर्चे पर पहुंचतीं, जदुनाथ डटे रहे लेकिन तभी एक गोली आकर उनके सिर में लगी और वे शहीद हो गए।
1 दिसंबर 1924 को जोधपुर, राजस्थान में जन्मे मेजर शैतानसिंह भाटी के पिता हेमसिंह भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे। 1962 में भारत-चीन युद्ध में मेजर शैतान सिंह दुश्मनों का डटकर सामना करते रहे। खुद बुरी तरह घायल होने के बाद उन्होंने सैनिकों से कहा कि वे उन्हें वहीं छोड़ दें और हाथ में मशीन गन बांधकर दुश्मनों का मुकाबला करते रहे। इस दौरान वे देश की सेवा करते हुए शहीद हो गए। उनका बर्फ में ढका शव तीन महीने बाद सेना को मिल पाया था। मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय सैनिक सूबेदार जोगिन्दर सिंह सहनान 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध में डटकर लड़े। लेकिन उस वक्त चीनी सेना की तादाद बहुत ज्यादा थी। इसी दौरान जोगिंदर सिंह दुश्मन की गिरफ्त में आ गए। इसके बाद जोगिंदर सिंह का कभी कोई पता नहीं चला, चीन ने न तो कभी उनका शव भारत को सौंपा और न ही उनके बारे में कभी कोई खबर दी।
1948 में कश्मीर में दुश्मनों पर जीत के लिए नौशेरा-राजौरी के बीच बने रास्ते की भौगोलिक रुकावटों के साथ-साथ दुश्मनों की सुरंगों को साफ करना बेहद जरूरी था। इस समय सेकंड लेफ्टिनेंट रामा राघोबा राणे ने मोर्चा संभालते हुए लगातार दो दिन तक बहादुरी और समझदारी के साथ यहां की बाधाएं हटाईं, जो भारत की जीत में एक महत्वपूर्ण योगदान था। इस अद्भुत योगदान के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1948 की गर्मियों में पाक सेना और कबाइलियों के खिलाफ हमले में राजपूताना राइफल्स डी कंपनी ने दुश्मनों का बुरा हाल कर दिया था लेकिन एक सकरे रास्ते में फंसने से 51 सैनिक शहीद हो गए थे। इस दौरान पीरूसिंह शेखावत अपने बचे हुए साथियों के साथ गोलियां खाने के बावजूद दुश्मनों पर काल बनकर टूटे। उन्हें गोलियां लगती गईं पर वे भी दुश्मनों को अपना निशाना बनाते रहे। गोलियां लगने के बावजूद उन्होंने दुश्मन के दो बंकरों को ध्वस्त कर दिया, तीसरे बंकर को बम से उड़ाने के दौरान एक गोली उनके सिर में आकर लगी और वे वीरगति को प्राप्त हो गए। इसके बाद उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
31 जनवरी 1923 को जम्मू में जन्मे मेजर सोमनाथ शर्मा 22 फरवरी 1942 को भारतीय सेना में शामिल हुए थे। 3 नवंबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी कश्मीर घाटी के बड़गाम मोर्चे पर निकली, यहां दुश्मन के 500 से ज्यादा सैनिकों ने तीन तरफ से उनपर हमला किया था। मेजर शर्मा ने इस दौरान बहादुरी से दुश्मन का मुकाबला किया। बुरी तरह घायल होने के बाद भी वे अपने बाकी बचे सैनिकों को गोलियां भर-भरकर देते रहे लेकिन इसी बीच वे मोर्टार का शिकार बन गए। अपने अंतिम समय में भी वे सैनिकों को प्रोत्साहित करते रहे। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1962 में चीन द्वारा भारत पर किए गए हमले के दौरान गोरखा राइफल्स के साथ धनसिंह की टुकड़ी ने डटकर चीनियों का सामना किया। लड़ाई के दौरान उनकी टुकड़ी में सिर्फ 3 लोग बाकी रह गए थे, तभी चीन ने चालाकी से धनसिंह थापा और अन्य दो साथियों को बंदी बना लिया था। उन्हें बुरी तरह टॉर्चर करते हुए सेना के राज उगलवाने की कोशिश की गई पर वे नहीं टूटे और जैसे-तैसे वहां से बचकर देश वापस लौट आए। थापा इसके बाद सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर पदोन्नत हुए और उन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1947 में भारत-पाक युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा के शहीद हो जाने के बाद लांसनायक करमसिंह ने मोर्चा संभाला था। उनके नेतृत्व में मोर्चे ने जीत हासिल की और वे सभी सही सलामत वापस भी आए। इस कार्य के लिए लांसनायक करमसिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो उन्होंने खुद अपने हाथों से लिया।
10 सितंबर 1965 में जब पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला किया गया, तब अमृतसर को घेरने की तैयारी में आगे बढ़ती पाकिस्तानी सेना के 3 टैंकों को अब्दुल हमीद ने बम से उड़ा दिया था। इस बात से तिलमिलाए पाक सैनिकों ने उन्हें घेरकर अपना निशाना बनाया और वे शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
भारत के गोरखा राइफल्स के कैप्टन गुरबचन को संयुक्त राष्ट्र के सैन्य प्रतिनिधि के रूप में एलिजाबेथ विला में दायित्व सौंपा गया था। विदेशी व्यापारियों की एक प्लानिंग के तहत दुश्मनों के 100 सैनिकों ने 5 दिसंबर 1961 को एलिजाबेथ विला के गोल चक्कर पर उनका रास्ता रोक लिया था। तब कैप्टन गुरबचन सिंह सालारिया ने मात्र 16 जवानों के साथ 100 सैनिकों का मुकाबला किया और 40 सैनिकों को ढेर करते हुए खुद शहीद हो गए।
11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट की पहली बटालियन में बतौर कमीशंड ऑफिसर शामिल हुए कैप्टन मनोज कुमार पांडे महज 24 वर्ष की आयु में देश के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए थे। जिसके बाद इस वीर जवान को मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान दिया गया।
1999 में हुए कारगिल युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा की टुकड़ी को भेजा गया था और अपने अद्भुत शौर्य के दम पर उन्होंने अपनी टुकड़े के साथ हम्प व राकी नाब को जीत लिया था। इसके बाद 4875 चोटी जीतने के बाद वे आगे बढ़ रहे थे कि तभी एक विस्फोट से अपने साथी लेफ्टिनेंट को बचाने के लिए वे आगे की ओर कूदे और एक गोली आकर उनके सीने में जा लगी। इसमें कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए थे और मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
16 सितंबर 1965 को जस्सोरान पर कब्जा कर लेफ्टिनेंट कर्नल आर्देशीर ने घमासान युद्ध में अपने 9 टैंक गंवाते हुए दुश्मन के 60 टैंकों को ध्वस्त कर दिया था लेकिन इस लड़ाई में कर्नल खुद दुश्मन का निशाना बन गए और वीरगति को प्राप्त हुए।
14 दिसंबर 1971 को जब 6 पाकिस्तानी सैबर जेट विमानों द्वारा श्रीनगर एयरफील्ड पर हमला किया गया तब फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों ने पाकिस्तान के दो विमानों को ध्वस्त कर दिया था। इसी दौरान उन्होंने फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुम्मनसिंह को संदेश भेजा कि शायद अब मेरा विमान भी अब निशाने पर आ गया है, अब तुम मोर्चा संभालो। इसी संदेश के साथ वे शहीद हो गए।
मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने अभूतपूर्व साहस का प्रदर्शन करते हुए 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। वे हॉकी के भी अच्छे खिलाड़ी थे।
25 नवंबर 1987 श्रीलंका में भारतीय सेना के शांति अभियान के दौरान उनका सामना तमिल टाइगर्स से हुआ था। दुश्मनों ने छिपकर फायरिंग करनी शुरू कर दी थी, जिसमें मेजर रामास्वामी को सीने में गोली लग गई थी, इसके बावजूद उन्होंने 6 उग्रवादियों को ढेर किया और वीरगति को प्राप्त हुए।
नायब सूबेदार बाना सिंह 1969 में सेना में शामिल हुए थे। इस दौरान सियाचिन के मोर्चे पर लड़ते हुए उन्होंने जो पराक्रम व साहस दिखाया उसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के अंतिम 2 घंटे में गंभीर हालत में भी मोर्चे पर डटे रहकर जीत हासिल करने पर मेजर होशियार सिंह को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
दिसंबर 1971 में भारत-पाक के बीच हुए युद्ध में 16 दिसंबर को सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने शकरगढ़ के जरपाल में अपने टैंक में आग लग जाने के बाद भी उसे नहीं छोड़ा और दुश्मनों के टैंकों को ध्वस्त करते हुए आखिर में खुद शहीद हो गए।
1996 में संजय कुमार भारतीय सेना में शामिल हुए थे और 3 साल बाद ही उन्हें अपने अद्भुत शौर्य व पराक्रम के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके बाद पदोन्नत होकर वे सूबेदार बने। उन्हें लिविंग लेजेंड भी कहा जाता है।
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने महज 19 वर्ष की आयु में परमवीर चक्र सम्मान प्राप्त कर लिया था। 1999 की लड़ाई में उनका विशेष पराक्रम था। इस दौरान टाइगर हिल पर तिरंगा लहराना एक बेहद कठिन व संघर्षपूर्ण मिशन था।