यहां रहते हैं भूतों के थानेदार, कैसी भी बुरी आत्मा हो या चोर-डकैत, पेशी पर आते ही थर-थर कांपने लगते हैं

ये दुनिया अजीबो-गरीब चीजों और रहस्यों से भरी है। ऐसी कई जगहें हैं, जिनके राज़ आज तक नहीं खुल पाए हैं। ऐसा ही एक मंदिर है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में। देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के कनौग गांव में स्थित इस मंदिर(Mysterious Temple of Kullu) के बारे में कहा जाता है कि इसमें भूतों के थानेदार विराजे हैं। यहां बुरी आत्माओं से छुटकारा तो मिलता ही है, चोर-डकैत भी अपना जुर्म कबूल कर लेते हैं।

Amitabh Budholiya | Published : Apr 22, 2022 8:24 AM IST / Updated: Apr 22 2022, 01:56 PM IST

कुल्लू. दुनिया विचित्र चीजों से भरी पड़ी है। देश-दुनिया में ऐसी कई जगहें-मंदिर आदि हैं, जिनके छुपे रहस्य आज तक कोई पता नहीं कर पाया है। ऐसा ही एक मंदिर है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में। देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी के कनौग गांव में स्थित इस मंदिर(Mysterious Temple of Kullu) के बारे में कहा जाता है कि इसमें भूतों के थानेदार विराजे हैं। यहां बुरी आत्माओं से छुटकारा तो मिलता ही है, चोर-डकैत भी अपना जुर्म कबूल कर लेते हैं। (फोटो:travelshoebum.com से साभार)

मन्नत पूरी होने पर लोहा व त्रिशूल चढ़ाते हैं
इस मंदिर को वनशीरा देवता का मंदिर कहते हैं। कहते हैं कि इस घाटी में कई देवी-देवताओं निवास है। वनशीरा देवता को जंगलों का राजा या देवता भी कहते हैं। इनकी पूजा-अर्चना कुल्लू के अलावा हिमाचल प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी होती है। वनशीरा देवता चांदी के एक सुंदर रथ पर विराजमान है। ये न्याय के देवता हैं। कहते हैं कि यहां आकर भूत-पिचाश भाग जाते हैं। पीड़ितों को बुरी आत्माओं से मुक्ति मिल जाती है। चोर-डकैत अपना जुर्म कबूल कर लेते हैं। इस इलाके में कोई भी उत्सव हो या खुशी का अवसर, बनशीरा देवता को सबसे पहले पूजा जात है। मन्नतें पूरी होने पर लोग यहां लोहा व त्रिशूल चढ़ाते हैं।

वनशीरा देवता के बारे में किवदंतियां हैं
वनशीरा देवता के बारे में कई किवदंतियां हैं। एक किवदंती है कि ब्रह्मर्षि ने देवता वनशीरा को यहां के वनों की रखवाली का जिम्मा सौंपा था। कुल्लू का दशहरा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। उत्सव में बनशीरा देवता की सवारी भी निकलती है। 972 से वनशीर देवता की कुल्लू दशहरा में सवारी निकलती आई है।
 
2018 में भीषण आग में नष्ट हो गया था मंदिर
यह बात मई, 2018 की है, जब घाटी गर्मी से तप रही थी। तब देवभूमि के जंगल भी आग लग गई थी। यह आग कुछ शरारती तत्वों ने लगाई थी। आग की चपेट में देवता बनशीरा का मंदिर भी जल कर राख हो गया था। तब देवता के पुजारी उत्तम चंद ने कहा था कि देवता का मंदिर जलता अच्छा संकेत नहीं है। हालांकि बाद में मंदिर को फिर से बनवाया गया।

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