दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट थे सतीश कौशिक, टेक्सटाइल फैक्ट्री में करते थे जॉब, ऐसा रहा 'कैलेंडर' का करियर

ग्रेजुएशन कंप्लीट होने के बाद सतीश कौशिक ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया। जहां एक्टर अनुपम खेर उनके बैचमेट थे। इसके बाद कौशिक पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) पहुंचे और आगे की पढ़ाई वहीं की।

करियर डेस्क : जाने माने एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर सतीश कौशिक (Satish Kaushik Death) अब इस दुनिया में नहीं हैं। गुरुवार सुबह उनका निधन हो गया है। कॉलेज में उनके बैचमेट अनुपम खेर ने सोशल मीडिया पर उनके निधन की जानकारी दी। 1983 में फिल्म 'मासूम' से फिल्मी करियर की शुरुआत करने से पहले सतीश कौशिक एक टेक्सटाइस फैक्ट्री में जॉब करते थे। 1987 में आई फिल्म 'मिस्टर इंडिया' में 'कैलेंडर' के किरदार से उन्हें पहचान मिली। अपने करियर में उन्होंने करीब 100 फिल्मों में काम किया। आइए जानते हैं सतीश कौशिक का एजुकेशन और सफर...

दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट थे सतीश कौशिक

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हरियाणा में 13 अप्रैल, 1956 में सतीश कौशिक का जन्म हुआ था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन कंप्लीट किया था। इसके बाद नई दिल्ली के ही प्रतिष्ठित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लिया। यहां एक्टर अनुपम खेर उनके बैचमेट थे। इसके बाद कौशिक पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) पहुंचे और आगे की पढ़ाई वहीं की। पढ़ाई पूरी होने के बाद सतीश कौशिक मुंबई पहुंचे और फिल्मों में हाथ आजमाने लगे।

कभी टेक्सटाइल फैक्ट्री में जॉब करते थे सतीश कौशिक

जब मुंबई में लाख कोशिशों के बावजूद सतीश कौशिक को काम नहीं मिला तो उन्होंने एक टेक्सटाइल फैक्ट्री में जॉब करनी शुरू कर दी। थियेटर से लगाव था तो नौकरी के साथ उन्होंने नादिरा बब्बर का थिएटर ग्रुप भी जॉइन कर लिया। कुछ ही वक्त बीता था और उन्हें डायरेक्टर शेखर कपूर के साथ काम करने का मौका मिला। वह उनके असिस्टेंट के तौर पर काम करने लगे। इसके बाद कुंदन शाह की फिल्म 'जाने भी दो यारों' के डायलॉग्स कौशिक ने ही लिखे। इस फिल्म में उन्हें काम करने का मौका भी मिला।

सतीश कौशिक का करियर

छोटे-छोटे किरदार निभाते-निभाते साल 1987 में आई फिल्म 'मिस्टर इंडिया' ने सतीश कौशिक को पहचान दिला दी। इस फिल्म में उनका किरदार 'कैलेंडर' का था और हर कोई उन्हें प्यार करने लगा। फिल्म के सेट पर उनकी दोस्ती बोनी कपूर और श्रीदेवी से हुई और फिर 'रूप की रानी, चोरों का राजा' में उन्हें डायरेक्शन का मौका मिला और उनके करियर की गाड़ी चल निकली। इसके बाद सतीश कौशिक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज भले ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया है लेकिन उनकी छाप यहां हमेशा के लिए रह गईं।

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