भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च को: इस विधि से करें पूजा, ये हैं शुभ मुहूर्त और चंद्रमा उदय होने का समय

हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य कहा गया है। यानी सभी शुभ कार्यों से पहले उनकी पूजा की जाती है। हर महीने के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि को भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत और पूजा की जाती है।

उज्जैन. चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी (Bhalchandra Sankashti Chaturthi) का व्रत किया जाता है। इस बार ये तिथि 21 मार्च, सोमवार को है। साथ ही साथ प्रत्येक चतुर्थी पर चंद्रदेव की पूजा करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से शिवपुत्र भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों की परेशानियां और संकट दूर करते हैं। इस दिन चंद्रदर्शन के बाद ही महिलाएं अपना व्रत पूरा करती हैं और भोजन करती हैं। 

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जानिए कब से कब तक रहेगी चतुर्थी तिथि?
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी सुबह 08:20 से 22 मार्च सुबह 06:24 तक रहेगी। पूजा के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 12.04 से 12. 53 मिनट तक है। वहीं चन्द्रोदय रात 08.23 पर होगा।  

सोमवार और चतुर्थी का शुभ योग
इस बार सोमवार को चतुर्थी व्रत होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। सोमवार भगवान शिव का दिन है और चतुर्थी भगवान श्रीगणेश की तिथि। चतुर्थी तिथि पर सोमवार होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस दिन शिवजी के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा भी करनी चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और हर मनोकामना पूरी होती है।

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ये है गणेशजी की सरल पूजा विधि
- भालचंद्र गणेश चतुर्थी पर स्नान के बाद सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें। 
- इसके बाद भगवान श्रीगणेश को जनेऊ पहनाएं। अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र आदि चढ़ाएं। पूजा का धागा अर्पित करें। चावल चढ़ाएं।
- गणेश मंत्र बोलते हुए दूर्वा चढ़ाएं और लड्डुओं का भोग लगाएं। कर्पूर से भगवान श्रीगणेश की आरती करें। 
- पूजा के बाद प्रसाद अन्य भक्तों को बांट दें। अगर संभव हो सके तो घर में ब्राह्मणों को भोजन कराएं। दक्षिणा दें।
- संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले व्यक्ति को शाम को चंद्र दर्शन करना चाहिए, पूजा करनी चाहिए। 
- इसके बाद ही भोजन करना चाहिए। इस प्रकार पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।


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